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________________ किया? आचारांगनियुक्ति में इस घटना का किञ्चिन्मात्र भी संकेत नहीं है तथापि आचारांगचूर्णि और आवश्यक चूर्णि में यह घटना किस प्रकार आई, यह शोधार्थियों के लिए अन्वेषणीय है। ग्रन्थ-परिमाण दशवैकालिक के दस अध्ययन हैं, उनमें पांचवें अध्ययन के दो और नौवें अध्ययन के चार उद्देशक हैं, शेष अध्ययनों के उद्देशक नहीं हैं। चौथा और नौवां अध्ययन गद्य-पद्यात्मक है, शेष सभी अध्ययन पद्यात्मक हैं। टीकाकार के अभिमतानुसार दशवकालिक के पद्यों की संख्या ५०९ है और चूलिकाओं की गाथा संख्या ३४ हैं। चूर्णिकार ने दशवैकालिक की पद्यसंख्या ५३६ और चूलिकाओं की पद्यसंख्या ३३ बताई है। पुण्यविजय जी महाराज द्वारा संपादित 'दसकालियसुत्तं' में दशवैकालिक की गाथाएं ५७५ बताई हैं।६६ मुनि कन्हैयालाल जी 'कमल' ने दशवैकालिक-संक्षिप्तदर्शन में लिखा है 'इसमें पद्यसूत्र गाथायें ५६१ हैं और गद्यसूत्र ४८ हैं।'६७ आचार्य तुलसी ने५८ 'दसवेआलियं' ग्रन्थ की भूमिका में दशवैकालिक की श्लोक-संख्या ५१४ तथा सूत्र संख्या ३१ लिखी हैं। इस प्रकार विभिन्न ग्रन्थों में गाथासंख्या और सूत्रसंख्या में अन्तर है। धर्म : एक चिन्तन दशवैकालिक का प्रथम अध्ययन 'द्रुमपुष्पिका' है। धर्म क्या है ? यह चिर-चिन्त्य प्रश्न रहा है। इस प्रश्न पर विश्व के मूर्धन्य मनीषियों ने विविध दृष्टियों से चिन्तन किया है। आचारांग में स्पष्ट कहा है कि तीर्थंकर की आज्ञाओं के पालन में धर्म है।६९ मीमांसादर्शन के अनुसार वेदों की आज्ञा का पालन ही धर्म है। आचार्य मनु ने लिखा है—राग-द्वेष से रहित सज्जन विज्ञों द्वारा जो आचरण किया जाता है और जिस आचरण को हमारी अन्तरात्मा सही समझती है, वह आचरण धर्म है। महाभारत में धर्म की परिभाषा इस प्रकार प्राप्त है जो प्रजा को धारण करता है अथवा जिससे समस्त प्रजा यानी समाज का संरक्षण होता है, वह धर्म है। आचार्य शुभचन्द्र ने धर्म को भौतिक और आध्यात्मिक अभ्युदय का साधन माना है। आचार्य कार्तिकेय ने वस्तु के स्वभाव को धर्म कहा है, जिससे स्वभाव में अवस्थिति और विभाग दशा का परित्याग होता है। चूंकि स्व-स्वभाव से ही हमारा परम श्रेय सम्भव है और इस दृष्टि से वही धर्म है। धर्म का लक्षण आत्मा का जो विशुद्ध स्वरूप है और जो आदि-मध्य-अन्त सभी स्थितियों में कल्याणकारी है—वह धर्म है। वैशेषिक दर्शन का मन्तव्य है जिससे अभ्युदय और निश्रेयस् की सिद्धि होती है वह धर्म है।६ ६६. श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई, जैन आगम ग्रन्थमाला ग्रन्थांक १५, पृष्ठ ८१ ६७. दशवैकालिकसूत्र मूल, प्रकाशक-आगम अनुयोग ट्रस्ट, अहमदाबाद १३, पृ. पांच ६८. भूमिका, पृष्ठ २८-२९, प्र. जैन विश्वभारती, लाडनूं ६९. आचारांग, १/६/२/१८१ ७०. मीमांसादर्शन, १/१/२ ७१. मनुस्मृति, २/१ ७२. महाभारत, कर्ण पर्व, ६९/५९ ७३. अमोलकसूक्तिरत्नाकर, पृष्ठ २७ ७४. कार्तिकेय-अनुप्रेक्षा, ४७८ ७५. अभिधानराजेन्द्रकोष, खण्ड ४, पृष्ठ २६६९ ७६. यतोऽभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्मः। —वैशेषिकदर्शन १/१/२ [२९]
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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