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________________ पंचम अध्ययन : पिण्डैषणा २०५ दीनता, स्तुति एवं कोप आदि का निषेध २३९. अदीणे वित्तिमेसेज्जा, न विसीएज पंडिए । अमुच्छिओ भोयणम्मि मायन्ने एसणारए ॥ २६॥ २४०. बहुं परघरे अत्थि, विविहं खाइम-साइमं । न तत्थ पंडिओ कुप्पे, इच्छा दिज परो न वा ॥ २७॥ २४१. सयणासण-वत्थं वा भत्त-पाणं व संजए । अदेंतस्स न कुप्पेज्जा, पच्चक्खे वि य दीसओ ॥ २८॥ २४२. इत्थियं पुरिसं वा वि डहरं वा महल्लगं । वंदमाणं न जाइज्जा नो य णं फरुसं वए ॥ २९॥ २४३. जे न वंदे, न से कुप्पे, वंदिओ न समुक्कसे । एवमन्नेसमाणस्स सामण्णमणुचिट्ठई ॥ ३०॥ [२३९] विवेकशाली (पण्डित) साधु दीनता से सर्वथा रहित होकर वृत्ति (भिक्षा) की एषणा करे। (भिक्षा . न मिले तो) विषाद न करे। (सरस) भोजन (मिलने पर उस) में अमूच्छित (अनासक्त) रहे। मात्रा को जानने वाला मुनि (आहार-पानी की) एषणा (एषणात्रय) में रत रहे ॥ २६ ॥ [२४०] गृहस्थ (पर) के घर में अनेक प्रकार का प्रचुर खाद्य तथा स्वाद्य आहार होता है, (किन्तु न देने पर) पण्डित मुनि (उस पर) कोप न करे, परन्तु ऐसा विचार करे कि यह गृहस्थ (पर) है, (यह) दे या न दे, इसकी इच्छा ॥ २७॥ [२४१] संयमी साधु प्रत्यक्ष (सामने) दीखते हुए भी शयन, आसन, वस्त्र, भक्त और पान न देने वाले पर क्रोध न करे ॥ २८॥ . . [२४२] (निर्ग्रन्थ श्रमण) स्त्री या पुरुष, बालक या वृद्ध वन्दना कर रहा हो, तो उससे किसी प्रकार की याचना न करे तथा आहार न दे तो उसे कठोर वचन भी न कहे ॥ २९॥ [२४३] जो वन्दना न करे, उस पर कोप न करे, (और राजा, नेता आदि कोई महान् व्यक्ति) वन्दना करे तो (मन में) उत्कर्ष (अहंकार) न लाए—(गर्व न करे)। इस प्रकार भगक्दाज्ञा का अन्वेषण करने वाले मुनि का श्रामण्य (साधुत्व) अखण्ड रहता है ॥ ३०॥ विवेचन–भिक्षाचर्या में श्रमणत्व का ध्यान रखे प्रस्तुत सूत्रगाथाओं (२३९ से २४३ तक) में भिक्षाचर्या करते समय साधु को क्षमा, मार्दव, आर्जव, अदैन्य, मन-वचन-काय-संयम, तप, त्याग आदि श्रमणधर्मों (श्रमणत्व को अखण्ड रखने वाले गुणों) को सुरक्षित रखने का निर्देश किया गया है। २६. (घ) ....णो णीयाणि अतिक्कमेज्जा, किं कारणं ? दीहा भिक्खारिया भवति, सुत्तत्थपलिमंथो य जडजीवस्स य अण्णे न रोयंति। जे ते अतिक्कमिजंति, ते अप्पत्तियं करेंति, जहा परिभवति एस अम्हेत्तिं, पव्वइयो वि जातिवायं ण मुयति। जातिवाओ य उववूहितो भवति।' -जिनदास चूर्णि, पृ. १९९
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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