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________________ दशवैकालिकसूत्र इच्छाकाम कहते हैं । इच्छा दो प्रकार की होती है—प्रशस्त और अप्रशस्त। धर्म और मोक्ष से सम्बन्धित इच्छा प्रशस्त है, जबकि युद्ध, कलह, राज्य या विनाश आदि की इच्छा अप्रशस्त है। मदनकाम कहते हैं वेदोपयोग को। जैसे स्त्री के द्वारा स्त्रीवेदोदय के कारण पुरुष की अभिलाषा करना, पुरुष द्वारा पुरुषवेदोदय के कारण स्त्री की अभिलाषा करना, तथा नपुंसकवेद के उदय के कारण नपुंसक द्वारा स्त्री-पुरुष दोनों की अभिलाषा करना तथा विषयभोग में प्रवृत्ति करना मदनकाम है। नियुक्तिकार कहते हैं "विषयसुख में आसक्त एवं कामराग में प्रतिबद्ध जीव को काम, धर्म से गिराते हैं। पण्डित लोग काम को एक प्रकार का रोग कहते हैं। जो जीव कामों की प्रार्थना (अभिलाषा) करते हैं, वे अवश्य ही रोगों की प्रार्थना करते हैं। वास्तव में 'काम' यहां केवल मदनकाम से ही सम्बन्धित नहीं, अपित इच्छाकाम और मदनकाम दोनों का द्योतक है और श्रमणत्व पालन करने की शर्त के रूप में अप्रशस्त इच्छाकाम और मदनकाम, इन दोनों का समानरूप से निवारण करना आवश्यक है। काम का मूल और परिणाम- प्रस्तुत गाथा में काम को श्रामण्य का विरोधी क्यों बताया गया है, इसके उत्तर में शास्त्रकार गाथा के उत्तरार्द्ध में कहते हैं "पए पए विसीयंतो संकप्पस्स वसं गओ।" फलितार्थ यह है कि काम का मूल संकल्प है। अर्थात् संकल्पों-विकल्पों में काम पैदा होता है। अगस्त्यसिंहचूर्णि में एक श्लोक उद्धृत किया गया है काम ! जानामि ते रूपं संकल्पात् किल जायसे । न त्वां संकल्पयिष्यामि, ततो मे न भविष्यसि ।* अर्थात्- "हे काम ! मैं तुझे जानता हूं। तू संकल्प से पैदा होता है। मैं तेरा संकल्प ही नहीं करूंगा, तो तू मेरे मन में उत्पन्न नहीं हो सकेगा।" तात्पर्य यह है—जब व्यक्ति काम का संकल्प करता है—अर्थात् मन में नाना प्रकार के कामभोगों या कामोत्तेजक मोहक पदार्थों की वासना, तृष्णा या इच्छाओं का मेला लगा लेता है, उन काम पदार्थों ५. ९. तत्रैषणमिच्छा, सैव चित्ताभिलाषरूपत्वात्कामा इतीच्छाकामा। -हारि. वृत्ति, पत्र ८५ इच्छा पसत्थमपसत्थिगा य...। —नियुक्ति गा. १६३ तत्थ पसत्था इच्छा, जहा–धम्मं कामयति, मोक्खं कामयति, अपसत्था इच्छा-रजं वा कामयति, जुद्धं वा कामयति, एवमादि इच्छाकामा । जिन. चूर्णि, पृ. ७६ मयणंमि वेय-उवओगो । —नियुक्ति गाथा १६३ (क) जहा इत्थी इत्थिवेदेण पुरिसं पत्थेइ, पुरिसोवि इत्थि एवमादी । -जिन. चूर्णि, पृ. ७६ (ख) मदयतीति मदन:-चित्रो मोहोदयः स एव कामप्रवृत्ति__ हेतुत्वात् मदनकामा। —हारि. वृत्ति, पृ. ८५-८६ विसयसुहेसु पसत्तं, अबुहजणं कामरागपडिबद्धं । उक्कामयति जीवं, धम्माओ, तेण ते कामा । अन्नं पि से नाम कामा रोगत्ति पंडिया बिंति । कामे पत्थेमाणो, रोगे पत्थेइ खलु जंतू ॥ —नियुक्ति गाथा १६४-१६५ संकप्पोत्ति वा छंदोत्ति वा कामज्झवसायो । -जिनदास चूर्णि, पृ. ७८ दशवै. अगस्त्यसिंह चूर्णि, पृ. ४१ १०. *
SR No.003465
Book TitleAgam 29 Mool 02 Dasvaikalik Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShayyambhavsuri
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Pushpavati Mahasati
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages535
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, & agam_dashvaikalik
File Size11 MB
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