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बिइयं अज्झयणं : द्वितीय अध्ययन
सामण्णपुव्वगं : श्रामण्य-पूर्वक
कामनिवारण के अभाव में श्रामण्यपालन असंभव
३. कहं नु कुज्जा सामण्णं, जो कामे न निवारए ।
पए पए विसीयंतो, संकप्पस्स वसं गओ ॥ [६] जो व्यक्ति काम (-भोगों) का निवारण नहीं कर पाता, वह संकल्प के वशीभूत होकर पद-पद पर विषाद पाता हुआ श्रामण्य का कैसे पालन कर सकता है ?*
विवेचन- श्रामण्यपालन-योग्यता की पहली कसौटी प्रस्तुत अध्ययन की प्रथम गाथा में कामनिवारण के अभाव में संकल्प-विकल्पों के थपेड़ों से आहत एवं विषादग्रस्त व्यक्ति के लिए श्रमणभाव का पालन अशक्य बताया गया है।
श्रामण्यपालन का अन्तस्तल- श्रामण्य का यहां व्यापक अर्थ है श्रमणभाव, शमनभाव, समभाव एवं सममनोभाव। समण शब्द के चार रूप और उनके व्यापक अर्थों पर पिछले अध्ययन में प्रकाश डाला गया है। इस दृष्टि से श्रामण्य के भी व्यापक रूप और उनके अर्थों पर विचार करें तो श्रामण्य-पालन के हार्द को पकड़ सकेंगे। जो व्यक्ति तप-संयम में या रत्नत्रयरूप मोक्ष मार्ग में स्वयं पुरुषार्थ (श्रमणभाव) नहीं करता, देवी-देवों या किसी अन्य शक्ति के आगे दीनतापूर्वक सांसारिक कामभोगों की याचना करता है, साथ ही कषायों तथा नोकषायों का शमन (शमनभाव) नहीं करता, तथा आर्त्त-रौद्र ध्यान करता है एवं इष्ट-अनिष्ट विषयों के प्रति समभाव नहीं रख पाता, वह पुनश्च जो विषय-कषायों के चक्कर में पड़कर अपने मन को प्रतिक्षण पापमय (अशुभ) बनाए रखता है, शुभ मन (सुमन) नहीं रख पाता, अर्थात् —जो श्रामण्य-पालन नहीं कर पाता, वह श्रमणभाव आदि के अभाव में उपर्युक्त दृष्टियों से कामनिवारण नहीं कर सकेगा। वह विविध प्रकार के विकल्पों की उधेड़-बुन में अहर्निश दुःखी एवं संतप्त होता रहता है। ऐसा व्यक्ति श्रामण्य का आनन्द, मोक्षमार्ग का या आत्मा का स्वाधीन सुख प्राप्त नहीं कर सकता। यहां कामनिवारण और श्रामण्य-पालन का अन्योन्याश्रय सम्बन्ध बताया है। अर्थात् —कामनिवारण के
*. तुलना कीजिए-दुक्करं दुत्तितिखञ्च अव्यत्तेन हि सामळ । बहूहि तत्थ सम्बाधा, यत्थ बालो विसीदतीति । कतिहं चरेय्य सामळ, चित्तं चे न निवारये । पदे पदे विसीदेय्य संकप्पानं वसानुगो ति ॥ १/१७
-संयुलनिकाय १०८ अर्थ श्रामण्य अव्यक्त होने से दुष्कर, दुस्तितिक्ष्य (दुःसह) लगता है और जब उसके पालन में बहुत बाधाएं आती हैं तो बाल (अज्ञानी) जन अत्यन्त विषाद पाते हैं। जो व्यक्ति अपने चित्त को कामभोगों से निवारित नहीं कर सकता, वह कितने दिनों तक श्रमणभाव को पालेगा ! क्योंकि यह व्यक्ति संकल्पों के वशीभूत होकर पद-पद खेदखिन्न होता रहेगा।