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________________ अनन्त पर्यायों का वर्णन है। वहाँ यह स्पष्ट किया गया है कि प्रत्येक द्रव्य की अनन्त पर्यायें हैं तो समग्र की भी अनन्त पर्यायें ही होंगी और द्रव्य की पर्यायें—परिणाम होते हैं तो वह द्रव्य कूटस्थनित्य नहीं हो सकता, किन्तु उसे परिणामीनित्य मानना पड़ेगा। इस सूचन से यह भी फलित होता है कि वस्तु का स्वरूप द्रव्य और पर्याय-रूप है। इस पद का 'विसेस' नाम दिया है, परन्तु इस शब्द का उपयोग सूत्र में नहीं किया गया है। समग्र पद में पर्याय शब्द का ही प्रयोग हुआ है। जैनशास्त्रों में इस पर्याय शब्द का विशेष महत्त्व है, इसलिए पर्याय या विशेष में कोई भेद नहीं है। यहाँ पर्याय शब्द प्रकार या भेद और अवस्था या परिणाम, इन अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। जैन आगमों में पर्याय शब्द प्रचलित था परन्तु वैशेषिक दर्शन में 'विशेष' शब्द का प्रयोग होने से उस शब्द का प्रयोग पर्याय अर्थ में और वस्तु के द्रव्य के भेद अर्थ में भी हो सकता है— यह बताने के लिए आचार्य ने इस प्रकरण का 'विसेस' नाम दिया हो ऐसा ज्ञात होता है। ___ प्रस्तुत पद में जीव और अजीव द्रव्यों में भेदों और पर्यायों का निरूपण है। भेदों का निरूपण तो प्रथम पद में था परन्तु प्रत्येक भेद में अनन्त पर्यायें हैं, इस तथ्य का सूचन करना इस पद की विशेषता है। इसमें २४ दंडक और २५ वें सिद्ध इस प्रकार उनकी संख्या और पर्यायों का विचार किया गया है। जीव द्रव्य के नारकादि भेदों की पर्यायों का विचार अनेक प्रकार— अनेक दृष्टियों से किया गया है। इसमें जैनसम्मत अनेकान्तदृष्टि का प्रयोग हुआ है। जीव के नारकादि के जिन भेदों की पर्यायों का निरूपण है उसमें द्रव्यार्थता, प्रदेशार्थता, स्थिति, कृष्णादि वर्ण, गंध, रस, स्पर्श, ज्ञान और दर्शन इन दश दृष्टियों से विचारणा की गई है। विचारणा का क्रम इस प्रकार है-प्रश्न किया गया कि नारक जीवों की कितनी पर्यायें हैं? उत्तर में कहा कि नारक जीवों की अनन्त पर्यायें हैं। इसमें संख्यात, असंख्यात और अनन्त के भेद भिन्नभिन्न दृष्टियों की अपेक्षा से हैं। द्रव्यदृष्टि से नारक संख्यात हैं, प्रदेशदृष्टि से असंख्यात प्रदेश होने से असंख्यात हैं और वर्ण, गंधादि व ज्ञान, दर्शन आदि दृष्टियों से उनकी पर्यायें अनन्त हैं। इस प्रकार सभी दंडकों और सिद्धों की पर्यायों का स्पष्ट निरूपण इस पद में किया है। आचार्य मलयगिरि ने प्रस्तुत दश दृष्टियों को संक्षेप में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव इन चार दृष्टियों में विभक्त किया है। द्रव्यार्थता और प्रदेशार्थता को द्रव्य में, अवगाहना को क्षेत्र में, स्थिति को काल में और वर्णादि व ज्ञानादि को भाव में समाविष्ट किया है। १२३ द्रव्य की दृष्टि से वनस्पति के अतिरिक्त शेष २३ दंडक के जीव असंख्य हैं और वनस्पति के अनन्त। पर्याय की दृष्टि से सभी २४ दंडक के जीव अनन्त हैं। सिद्ध द्रव्य की दृष्टि से अनन्त हैं। प्रथम पद में अजीव के जो भेद किए हैं, वे प्रस्तुत पद में भी हैं। अन्तर यह है कि वहाँ प्रज्ञापना के नाम से हैं और यहां पर्याय के नाम से। पुद्गल के यहाँ पर परमाणु और स्कन्ध ये दो भेद किये हैं। स्कन्धदेश और स्कन्धप्रदेश को स्कन्ध के अन्तर्गत ही ले लिया है। रूपी अजीब की पर्याय अनन्त हैं। उनका द्रव्यक्षेत्र-काल-भाव की दृष्टि से इसमें विचार किया है। परमाणु, द्विप्रदेशी स्कन्ध यावत् दशप्रदेशी स्कन्ध और संख्यातप्रदेशी, असंख्यातप्रदेशी और अनन्तप्रदेशी स्कन्धों की पर्यायें अनन्त हैं। स्थिति की अपेक्षा परमाणु और १२३. प्रज्ञापना टीका, पत्र १८१ अ. [५६]
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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