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________________ [४४७ पांचवा विशेषपद (पर्यायपद)] से केणटेणं ? गोयमा! जहण्णठितीए अणंतपएसिए जहण्णठितीयस्स अणंतपएसियस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्ठयाए छट्ठाणवडिते, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए तुल्ले, वण्णादि-अट्ठाफासेहि य छट्ठाणवडिते। .. [५३७-१ प्र.] भगवन्! जघन्य स्थिति वाले अनन्त प्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गये हैं ? .. [५३७-१ उ.] गौतम! उनके अनन्त पर्याय कहे हैं। ___ [प्र.] भगवन्! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्य स्थिति वाले अनन्त प्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं। ___ [उ.] गौतम! एक जघन्य स्थिति वाला अनन्तप्रदेशी स्कन्ध दूसरे जघन्य स्थिति वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है, स्थिति की दृष्टि से तुल्य है और वर्णादि तथा अष्ट स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। - [२] एवं उक्कोसठितीए वि। [५३७-२] इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के पर्यायों के विषय में समझना चाहिए। [३] अजहण्णमणुक्कोसठितीए वि एवं चेव। नवरं ठितीए चउट्ठाणवडिते। [५३७-३ प्र.] अजघन्य-अनुत्कृष्ट (मध्यम) स्थिति वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों का पर्यायविषयक कथन भी इसी प्रकार समझना चाहिए। विशेषता यह है कि स्थिति की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित होता है। विवेचन–जघन्यादिविशिष्ट अवगाहना एवं स्थिति वाले द्विप्रदेशी से अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक के पर्यायों की प्ररूपणा - प्रस्तुत तेरह सूत्रों (सू. ५२५ से ५३७ तक) में जघन्य, उत्कृष्ट और मध्यम अवगाहना एवं स्थिति वाले परमाणु पुद्गलों तथा द्विप्रदेशिक, त्रिप्रदेशिक, यावत् संख्यातप्रदेशी, असंख्यातप्रदेशी और अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के पर्यायों की प्ररूपणा की गई है। जघन्य अवगाहना वाले द्विप्रदेशी स्कन्ध चार स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित - जघन्य अवगाहना वाले द्विप्रदेशी स्कन्धों में शीत, उष्ण, रूक्ष और स्निग्ध, ये चार स्पर्श ही पाए जाते हैं, इनमें शेष कर्कश, कठोर, हल्का (लघु) और भारी (गुरु) ये चार स्पर्श नहीं पाए जाते। इनमें षट्स्थानपतित हीनाधिकता पाई जाती है। द्विप्रदेशीस्कन्ध में मध्यम अवगाहना नहीं होती—दो परमाणुओं का पिण्ड द्विप्रदेशी स्कन्ध कहलाता है। उसकी अवगाहना या तो आकाश के एक प्रदेश में होगी अथवा अधिक से अधिक दो आकाशप्रदेशों में होगी। एक प्रदेश में जो अवगाहना होती हैं, वह जघन्य अवगाहना है और दो प्रदेशों में जो अवगाहना है, वह उत्कृष्ट है। इन दोनों के बीच की कोई अवगाहना नहीं होती। अतएव मध्यम अवगाहना का अभाव है।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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