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________________ पांचवा विशेषपद (पर्यायपद)] [४४५ [५३३-१ उ.] गौतम! (उनके)अनन्त पर्याय कहे हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण ऐसा कहा जाता है कि जघन्य स्थिति वाले द्विप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं ? [उ.] गौतम! एक जघन्य स्थित वाला द्विप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्य स्थिति वाले द्विप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है, अवगाहना की दृष्टि से कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक होता है। यदि हीन हो तो एकप्रदेश हीन और यदि अधिक हो, तो एक प्रदेश अधिक है। स्थिति की अपेक्षा से तुल्य है और वर्णादि तथा चार स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है। [२] एवं उक्कोसठितीए वि। [५३२-२] इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले द्विप्रदेशी स्कन्धों के विषय में कहना चाहिए। [३] अजहण्णमणुक्कोसठितीए वि एवं चेव। नवरं ठितीए चउट्ठाणवडिते। [५३३-३ प्र.] मध्यम स्थिति वाले द्विप्रदेशी स्कन्धों का पर्यायविषयक कथन भी इसी प्रकार करना चाहिए। विशेषता यह है कि स्थिति की अपेक्षा से वह चतुःस्थानपतित हीनाधिक है। ५३४. एवं जाव दसपदेसिते। नवरं पदेसपरिवुड्डी कातव्वा। ओगाहणट्ठयाए तिसु वि गमएसु जाव दसपएसिए णव पएसा वड्डिजति । [५३४] इसी प्रकार यावत् दशप्रदेशी स्कन्ध तक के पर्यायों के विषय में समझ लेना चाहिए। विशेष यह है कि इसमें एक-एक प्रदेश की क्रमशः परिवृद्धि करनी चाहिए। अवगाहना के तीनों गमों [आलापकों] में यावत् दशप्रदेशी स्कन्ध तक ऐसे ही कहना चाहिए। (क्रमशः) नौ प्रदेशों की वृद्धि हो जाती है। ५३५. [१] जहण्णठितीयाणं भंते! संखेज्जपदेसियाणं पुच्छा । गोयमा! अणंता। से केणद्वेणं? गोयमा! जहण्णठितीए संखेज्जपदेसिए खंधे जहएणठितीयस्स संखेजपएसियस्स खंधस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पदेसट्टयाए दुट्ठाणवडिते, ओगाहणट्ठयाए दुट्टाणवडिते, ठितीए तुल्ले, वण्णादिचउफासेहि य छट्ठाणवडिते। [५३५-१ प्र.] जघन्य स्थिति वाले संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [५३३-१ उ.] गौतम! (उनके)अनन्त पर्याय (कहे गए हैं।) [प्र.] भगवन् ! किस कारण ऐसा कहा जाता है कि जघन्य स्थिति वाले संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं ?
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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