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पांचवा विशेषपद (पर्यायपद ) ]
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[५३० - ३] मध्यम अवगाहना वाले ( असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों ) का ( पर्याय विषयक कथन भी) इसी प्रकार समझना चाहिए । विशेष यह है कि ( वह) स्वस्थान में चतुःस्थानपतित है । ५३१. [ १ ] जहण्णोगाहणगाणं भंते ! अनंतपएसियाणं पुच्छा ।
गोयमा ! अनंता ।
से केणणं भंते! एवं वुच्चति ?
गोयमा ! जहण्णोगाहणए अणतपएसिए खंधे जहण्णोगाहणगस्स अणतपएसियस्स खंधस्स दव्वट्टयाए तुल्ले, पएसट्टयाए छट्टाणवडिते, ओगाहणट्टयाए तुल्ले, ठितीए चउट्ठाणवडिते, वण्णादिउवरिल्लचउफासेहि य छट्ठाणवडिते ।
[५३१-१ प्र.] भगवन्! जघन्य अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [ ५३१ - १ उ. ] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय कहे हैं।
[प्र.] भगवन्! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्य अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं ।
• [ उ.] गौतम ! एक जघन्य अवगाहना वाला अनन्तप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे जघन्य अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहन की दृष्टि से तुल्य है, स्थिति की अपेक्षा से चतुः स्थानपतित है, वर्णादि तथा उपर्युक्त चार स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपंतित है ।
[ २ ] उक्कोसोगाहणए वि एवं चेव । नवरं ठितीए वि तुल्ले ।
[५३१-२] उत्कृष्ट अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों का ( पर्यायविषयक कथन ) भी इसी प्रकार (समझना चाहिए) । विशेष यह है कि स्थिति की अपेक्षा भी तुल्य है ।
[ ३ ] अजहण्णमणुक्कोसोगाहणगाणं भंते ! अणंतपएसियाणं पुच्छा । गोयमा ! अनंता ।
सेकेणट्टेणं ?
गोयमा! अजहण्णमणुक्कोसोगाहणए अनंतपएसिए खंधे अजहण्णमणुक्कोसोगाहणगस्स अणतपदेसियस्स खंधस्स दव्वट्टयाए तुल्ले, पदेसट्टयाए छट्टाणवडिए, ओगाहणट्टयाए चउट्ठाणवडिए, ठितीए चउट्ठाणवडिते, वण्णादि अट्ठाणफासेहिं छट्टाणवडिते ।
[५३१-३ प्र.] भगवन् ! मध्यम अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं? [५३१ - १ उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय कहे हैं ।
[प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि मध्यम अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध के अनन्त पर्याय हैं ?