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________________ प्रवचनसारोद्धार१०६ में अनार्य देशों के नाम इस प्रकार हैं १. शक, २. यवन, ३. शबर, ४. बर्बर, ५. काय, ६. मरुण्ड, ७. अड्ड, ८. गोपा (गौड्ड), ९. पक्कणग, १०. अरबाग, ११. हूण, १२. रोमक, १३. पारस, १४. खस, १५. खासिक, १६. दुम्बिलक, १७. लकुश, १८. बोक्कस, १९. भिल्ल, २०. आन्ध्र (अन्ध्र) २१. पुलिन्द, २२. क्रोंच, २३. भ्रमररुच, २४. कोर्पक २५. चीन, २६. चंचुक, २७. मालव, २८. द्रविड, २९. कुलार्घ, ३०. केकय, ३१. किरात, ३२. हयमुख, ३३. खरमुख ३४. गजमुख, ३५. तुरंगमुख ३६. मिण्ढकमुख, ३७. हयकर्ण, ३८. गजकर्ण । महाभारत में उपायन-पर्व में भी कुछ नाम इसी तरह से प्राप्त होते हैं, जो निम्नानुसार हैं १. म्लेच्छ २. यवन ३. बर्बर ४. आन्ध्र ५. शक ६. पुलिन्द ७ औरुणिक ८. कम्बोज ९. आमीर १०. पल्हव ११. दरद १२. कंक १३. खस १४. केकय १५. त्रिगर्त १६. शिबि १७. भद्र १८. हंस कायन १९. अम्बष्ठ २०. तार्क्ष्य २१. प्रहव २२. वसाति २३. मौंलिय २४. क्षुद्रमालवक २५. शौण्डिक २६. पुण्ड्र २७. शाणवत्य २८. कायव्य २९. दार्व ३०. शूर ३१. वैयमक ३२. उदुम्बर ३३. वाल्हीक ३४. कुदमान ३५. पौरक आदि । इस प्रकार मानव जाति एक होकर भी उसके विभिन्न भेद हो गए हैं । पशु में जिस प्रकार जातिगत भेद हैं, वैसे ही मनुष्य में जातिगत भेद नहीं हैं। मानव सर्वाधिक शक्तिसंपन्न और बौद्धिक प्राणी है । वह संख्या की दृष्टि से अनेक है पर जाति की दृष्टि से एक है। उपर्युक्त चर्चा में जो भेद प्रतिपादित किये गये हैं, वे भौगोलिक और गुणों की दृष्टि से हैं । जीवों का निवासस्थान संसारी और सिद्ध के भेद और प्रभेद की चर्चा करने के पश्चात् उन जीवों के निवासस्थान के सम्बन्ध चिन्तन किया गया है। इस चिन्तन का मूल कारण यह है कि आत्मा के परिमाण के सम्बन्ध में उपनिषदों अनेक कल्पनाएँ हैं । इन सभी कल्पनाओं के अन्त में ऋषियों की विचारधारा आत्मा को व्यापक मानने की ओर विशेष रही है । १०७ प्रायः सभी वैदिक दर्शनों ने आत्मा को व्यापक माना है। हाँ, आचार्य शंकर और आचार्य रामानुज आदि ब्रह्मसूत्र के भाष्यकार इसमें अपवाद हैं। उन्होंने ब्रह्मात्मा को व्यापक और जीवात्मा को अणु परिमाण माना है। बृहदारण्यक उपनिषद् में आत्मा को चावल या जौ के दाने के परिमाण माना है । १०८ कठोपनिषद् में आत्मा को 'अंगुष्ठपरिमाण' का लिखा है१०९ तो छान्दोग्योपनिषद् में आत्मा को 'बालिश्त ' परिमाण का कहा है। ११० मैत्र्युपनिषद् में आत्मा को अणु की तरह सूक्ष्म माना है । १११ कठोपनिषद् ११२, १०६. प्रवचनसारोद्धार, गाथा १५८३-१५८५ १०७. (क) मुण्डक - उपनिषद् १ । १ । ६ (ग) न्यायमंजरी, पृष्ठ ४६८ (विजय) १०८. बृहदारण्यक उपनिषद्, ५ । ६ । १ १०९. कठोपनिषद् २ । २ । १२ ११०. छान्दोग्योपनिषद् ५ । १८ । १ १११. मैत्र्युपनिषद् ६ । ३८ ११२. कठोपनिषद् १ । २ । २० (ख) वैशेषिकसूत्र ७ । १ । १२ (घ) प्रकरणपंजिका, पृष्ठ १५८ [ ५९ ]
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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