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[प्रज्ञापना सूत्र
५१३. संखेजपएसोगाढाणं पुच्छा । । गोयमा! अणंता। से केणठेणं भंते! एवं वुच्चति ?
गोयमा! संखेजपएसोगाढे पोग्गले संखेन्जपएसोगाढस्स पोग्गलस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्ठयाए छट्ठाणवडिते, ओगाहणट्ठयाए दुट्ठाणवडिते, ठितीए चउट्ठाणवडिते, वण्णाइउवरिल्लचउफासेहि य छट्ठाणवडिते।
[५१३ प्र.] भगवन् ! संख्यातप्रदेशावगाढ स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [५१३ उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय कहे हैं ।
[प्र.] भगवन् ! किस हेतु से कहा जाता है कि संख्यातप्रदेशावगाढ स्कन्धों (पुद्गलों) के अनन्त पर्याय हैं ?
[उ.] गौतम! एक संख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल, दूसरे संख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से द्विस्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है, वर्णादि तथा उपर्युक्त चार स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है।
५१४. असंखेज्जपएसोगाढाणं पुच्छा । गोयमा! अणंता पज्जवा। से केणढेणं भंते! एवं वुच्चति ?
गोयमा! असंखेज्जपएसोगाढे पोग्गले असंखेजपएसोगाढस्स पोग्गलस्स दव्वट्ठाए तुल्ले, पदेसट्टयाए छट्ठाणवडिते, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए चउट्ठाणवडिते, वण्णादि-अट्ठफासेहिं छट्ठाणवडिते।
[५१४ प्र.] भगवन् ! असंख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गलों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [५१४ उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय कहे हैं।
[प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि असंख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल के अनन्त पर्याय हैं ?
[उ.] गौतम! एक असंख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल, दूसरे असंख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है, अवगाहना की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है, स्थिति की अपेक्षा से चतु:स्थानपतित है, वर्णादि तथा अष्ट स्पर्शों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित है।
५१५. एगसमयठितीयाणं पुच्छा । गोयमा! अणंता पज्जवा पण्णत्ता। से केणठेणं भंते! एवं वुच्चति ?