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________________ ४३२] [प्रज्ञापना सूत्र [५०७] इसी प्रकार यावत् दशप्रदेशिक स्कन्धों तक का पर्यायविषयक कथन करना चाहिए। विशेष यह है कि अवगाहना की दृष्टि से प्रदेशों की (क्रमशः) वृद्धि करना चाहिए; यावत् दशप्रदेशी स्कन्ध नौ प्रदेश-हीन तक होता है। ५०८. संखेज्जपदेसियाणं पुच्छा। गोयमा! अणंता। से केणठेणं भंते! एवं वुच्चति ? गोयमा! संखेन्जपएसिए खंधे संखेन्जपएसियस्स खंधस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले; पदेसट्ठयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अब्भहिते-जति हीणे संज्जभागहीणे वा संखेज्जगुणहीणे वा, अह अब्भहिए एवं चेव; ओगाहणट्ठयाए वि दुट्ठाणवडिते, ठितीए चउट्ठाणवडिते, वण्णादि-उवरिल्लचउफासपज्जवेहि य छट्ठाणवडिते। [५०८ प्र.] भगवन् ! संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [५०८ उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय कहे हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं ? [उ.] गौतम! एक संख्यातप्रदेशी स्कन्ध, दूसरे संख्यातप्रदेशी स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित् अधिक होता है। यदि हीन हो तो, संख्यातभाग हीन या संख्यातगुण हीन होता है। यदि अधिक हो तो संख्यातभाग अधिक या संख्यात गुण अधिक होता है। अवगाहना की अपेक्षा से द्विस्थानपतित होता है। स्थिति की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित होता है। वर्णादि तथा उपर्युक्त चार स्पर्शों के पर्यायों की अपेक्षा से षट्स्थानपतित होता है। ५०९. असंखज्जपएसियाणं पुच्छा । गोयमा! अणंता। से केणढेणं भंते! एवं वुच्चति ? गोयमा! असंखेज्जपएसिए खंधे असंखेजपएसियस्स खंधस्स दव्वट्ठयाए तुल्ले, पएसट्टयाए चउट्ठाणवडिते, ओगाहणट्ठयाए चउट्ठाणवडिते, ठितीए चउट्ठाणवडिते, वण्णादि-उवरिल्लचउफासेहि य छट्ठाणवडिते। [५०९ प्र.] भगवन् ! असंख्यातप्रदेशिक स्कन्धों के कितने पर्याय कहे गए हैं ? [५०९ उ.] गौतम! अनन्त पर्याय कहे हैं। [प्र.] भगवन्! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि असंख्यातप्रदेशिक स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं ? [उ.] गौतम! एक असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध, दूसरे असंख्यातप्रदेशिक स्कन्ध से द्रव्य की अपेक्षा से तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से चतुःस्थानपतित है, अवगाहना की दृष्टि से चतुःस्थानपतित है, स्थिति
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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