SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 520
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पांचवा विशेषपद (पर्यायपद ) ] [ ४१९ मध्यम स्थिति वाला तिर्यंचपंचेन्द्रिय स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित मध्यम स्थिति वाला तिर्यंचपंचेन्द्रिय संख्यात अथवा असंख्यात वर्ष की आयु वाला भी हो सकता है, क्योंकि एक समय कम तीन पल्योपम की आयुवाला भी मध्यमस्थितिक कहलाता है । अतः वह चतु: स्थानपतित है । आभिनिबोधिक ज्ञानी तिर्यंचपंचेन्द्रिय स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित असंख्यात वर्ष की आयु वाले पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च में भी अपनी भूमिका के अनुसार जघन्य आभिनिबोधिक ज्ञान और श्रुतज्ञान पाए जाते हैं। इसी प्रकार संख्यातवर्ष की आयु वालों में जघन्य मति - श्रुतज्ञान संभव होने से यहाँ स्थिति की अपेक्षा से इसे चतुःस्थानपतित कहा है। मध्यम आभिनिबोधिकज्ञानी तिर्यंच पंचेन्द्रिय की अपेक्षा से षट्स्थानपतित क्योंकि आभिनिबोधिक ज्ञान के तरतमरूप पर्याय अनन्त होते हैं । अतएव उनमें अनन्तगुणहीनता - अधिकता भी हो सकती है 1 — मध्यम अवधिज्ञानी तिर्यंचपंचेन्द्रिय स्वस्थान में षट्स्थानपतित • इसका मतलब है वह स्वस्थान अर्थात् मध्यम अवधिज्ञान में षट्स्थानपतित होता है। एक मध्यम अवधिज्ञानी दूसरे मध्यमअवधिज्ञानी तिर्यंचपंचेन्द्रिय से षट्स्थानपतित हीन अधिक हो सकता है । विभंगज्ञानी तिर्यंचपंचेन्द्रिय स्थिति की दृष्टि से त्रिस्थानपतित चूंकि अवधिज्ञान और विभंगज्ञान असंख्यातवर्ष की आयु वाले को नहीं होता, अतः अवधिज्ञान और विभंगज्ञान में नियम से त्रिस्थानपतित ( हीनाधिक) होता है । जघन्य-उत्कृष्ट-मध्यम अवगाहनादि वाले मनुष्यों की पर्याय प्ररूपणा ४८९. [ १ ] जहण्णोगाहणगाणं भंते! मणुस्साणं केवतिया पज्जवा पण्णत्ता ? गोया ! अनंता पज्जवा पण्णत्ता । से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चइ जहणोगाहणगाणं मणुस्साणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ? गोयमा! जहणोगाहणए मणूसे जहण्णोगाहणस्स मणूसस्स दव्वट्टयाते तुल्ले, पदेसट्टयाए तुल्ले, ओगाहणट्टयाए, तुल्ले, ठितीए तिट्ठाणवडिते, वण्ण- गन्ध-रस- फासपज्जवेहिं तिहिं णाणेहिं दोहिं अण्णाणेहिं तिहिं दंसणेहिं छट्ठाणवडिते । [४८९-१ प्र.] भगवन् ! जघन्य अवगाहना वाले मनुष्यों के कितने पर्याय कहे गये हैं ? [४८९-१ उ.] गौतम! (उनके) अनन्त पर्याय कहे गए हैं। [प्र.] भगवन्! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि 'जघन्य अवगाहना वाले मनुष्यों के अनन्त पर्याय कहे हैं ?' [उ.] गौतम! एक जघन्य अवगाहना वाला मनुष्य, दूसरे जघन्य अवगाहना वाले मनुष्य से द्रव्य १. (क) प्रज्ञापना म. वृत्ति, पत्रांक १९४ (ख) प्रज्ञापना. प्रमेयबोधिनी. भा. २. पू. ७२८ से ७३७
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy