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________________ ३७२] [प्रज्ञापना सूत्र गोयमा! अजहण्णमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई ठिती पण्णत्ता । ॥ पण्णवणाए भगवई चउत्थं ठिइपयं समत्तं ॥ [४३७-३ प्र.] भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध-विमानवासी पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [४३७-३ उ.] गौतम! इनकी स्थिति अजघन्य-अनुत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागरोपम की कही गई है। विवेचन वैमानिक देवगणों की स्थिति का निरूपण—प्रस्तुत इकतीस सूत्रों (सू. ३०७ से ३३७ तक) में वैमानिक देवों के निम्नोक्त प्रकार से स्थिति का निरूपण किया गया है—(१) वैमानिक देवों (औधिक, अपर्याप्त. एवं पर्याप्त) की, (२) वैमानिक देवियों (औधिक, अपर्याप्तक एवं पर्यासक) की (३) तथा सौधर्मकल्प से लेकर अच्युतकल्प तक के देवों (औधिक, अपर्याप्तक एवं पर्याप्तक) की तथा सौधर्म एवं ईशान कल्प की देवियों (औधिक, अपर्याप्तक, पर्याप्तक, परिगृहीता, अपरिगृहीता) की और (४) नौ सूत्रों में नौ प्रकार के ग्रैवेयकों (औधिक, अपर्याप्तक एवं पर्याप्त) की तथा (५) विजय, वैजयन्त, जयन्त एवं अपराजित देवों एवं सर्वार्थसिद्ध देवों (औधिक, अपर्याप्तक एवं पर्याप्तक) की स्थिति। ॥ प्रज्ञापनासूत्र : चतुर्थ स्थितिपद समाप्त ॥
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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