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________________ ३७०] [प्रज्ञापना सूत्र गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त। [४३४-२ प्र.] भगवन् ! उपरितन-मध्यम ग्रैवेयक अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [४३४-२ उ.] गौतम! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की है। [३] उवरिममज्झिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं एगूणतीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई। [४३४-३ प्र.] भगवन् ! उपरितन-मध्यम ग्रैवेयक पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? __[४३४-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम उनतीस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीस सागरोपम की है। ४३५. [१] उवरिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं तीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं एक्कतीसं सागरोवमाई। [४३५-१ प्र.] भगवन्! उपरितन-उपरितन (ऊपर के त्रिक के सबसे ऊपर वाले) ग्रैवेयक-देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [४३५-१ उ.] गौतम! जघन्य तीस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट इकतीस सागरोपम की है। [२] उवरिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। . [४३५-२ प्र.] भगवन्! उपरितन-उपरितन ग्रैवेयक अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [४३५-२ उ.] गौतम! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की है। [३] उवरिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहत्तूणाई, उक्कोसेणं एक्कतीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई। [४३५-३ प्र.] भगवन् ! उपरितन-उपरितन ग्रैवेयक पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? __ [४३५-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम तीस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम इकतीस सागरोपम की है। ४३६. [१] विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजिएसु णं भंते! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ?
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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