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[प्रज्ञापना सूत्र
गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त।
[४३४-२ प्र.] भगवन् ! उपरितन-मध्यम ग्रैवेयक अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ?
[४३४-२ उ.] गौतम! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की है। [३] उवरिममज्झिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा ।
गोयमा! जहण्णेणं एगूणतीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई।
[४३४-३ प्र.] भगवन् ! उपरितन-मध्यम ग्रैवेयक पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? __[४३४-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम उनतीस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीस सागरोपम की है।
४३५. [१] उवरिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं तीसं सागरोवमाइं, उक्कोसेणं एक्कतीसं सागरोवमाई।
[४३५-१ प्र.] भगवन्! उपरितन-उपरितन (ऊपर के त्रिक के सबसे ऊपर वाले) ग्रैवेयक-देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ?
[४३५-१ उ.] गौतम! जघन्य तीस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट इकतीस सागरोपम की है। [२] उवरिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं अपज्जत्ताणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। .
[४३५-२ प्र.] भगवन्! उपरितन-उपरितन ग्रैवेयक अपर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ?
[४३५-२ उ.] गौतम! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की है। [३] उवरिमउवरिमगेवेज्जगदेवाणं पज्जत्ताणं पुच्छा ।
गोयमा! जहण्णेणं तीसं सागरोवमाइं अंतोमुहत्तूणाई, उक्कोसेणं एक्कतीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई।
[४३५-३ प्र.] भगवन् ! उपरितन-उपरितन ग्रैवेयक पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ?
__ [४३५-३ उ.] गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम तीस सागरोपम की तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम इकतीस सागरोपम की है।
४३६. [१] विजय-वेजयंत-जयंत-अपराजिएसु णं भंते! देवाणं केवतियं कालं ठिती पण्णत्ता ?