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[प्रज्ञापना सूत्र - [३२५ उ.] गौतम! १. सबसे थोड़े आयुष्यकर्म के बन्धक जीव हैं, २. (उनकी अपेक्षा) अपर्याप्तक संख्यातगुणे हैं, ३. (उनकी अपेक्षा) सुप्तजीव संख्यातगुणे हैं, ४. (उनकी अपेक्षा) समुद्घात वाले संख्यातगुणे हैं, ५. (उनसे) सातावेदक संख्यातगुणे हैं, ६. (उनसे) इन्द्रियोपयुक्त संख्यातगुणे हैं, ७. (उनकी अपेक्षा) अनाकारोपयुक्त संख्यातगुणे हैं, ८. (उनकी अपेक्षा) साकारोपयुक्त संख्यातगुणे हैं, ९. (उनकी अपेक्षा) नो-इन्द्रियोपयुक्त जीव विशेषाधिक हैं, १०. (उनकी अपेक्षा)असातावेदक विशेषाधिक हैं, ११. (उनकी अपेक्षा) समुद्घात न करते हुए जीव विशेषाधिक हैं, १२. (उनकी अपेक्षा) जागृत विशेषाधिक हैं, १३. (उनसे) पर्याप्तक जीव विशेषाधिक हैं, १४. (और उनकी अपेक्षा भी) आयुष्यकर्म के अबन्धक जीव विशेषाधिक हैं।
पच्चीसवाँ (बन्ध) द्वार ॥ २५ ॥ विवेचन-पच्चीसवाँ बन्धद्वर -बन्धद्वार के माध्यम से आयुष्यकर्म के बन्धक-अबन्धक आदि जीवों का अल्पबहुत्व —प्रस्तुत सूत्र (३२५) में आयुष्कर्म के बन्धक-अबन्धक, पर्याप्तकअपर्याप्तक, सुप्त-जागृत, समुद्घात-कर्ता, अकर्ता, सातावेदक-असातावेदक, इन्द्रियोपयुक्त-नो-इन्द्रियोपयुक्त एवं साकारोपयुक्त-अनाकारोपयुक्त; सामूहिक रूप से इन सात युगलों के अल्पबहुत्व का विचार किया गया है।
अल्पबहुत्व का स्पष्टीकरण - आयुष्यकर्म के बन्धक जीव सबसे अल्प इसलिए हैं कि आयुष्यकर्म के बन्ध का काल प्रतिनियत और स्वल्प है। अनुभूयमान भव के आयुष्य का तीसरा भाग अवशेष रहने पर अथवा उस तीसरे भाग में से तीसरा भाग आदि अवशेष रहने पर ही जीव परभव का आयुष्य बांधते हैं। अतः त्रिभागों में से दो भाग अबन्धकाल और एक भाग बन्धकाल है और वह बन्धकाल भी अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होता है। आयुष्यकर्म-बन्धकों की अपेक्षा अपर्याप्तक संख्यातगुणे कहे गए हैं। अपर्याप्तकों से सुप्त जीव संख्यातगुणे अधिक हैं, क्योंकि सुप्तजीव पर्याप्तक और अपर्याप्तक, दोनों में पाये जाते हैं, और अपर्याप्तक की अपेक्षा पर्याप्तक संख्यातगुणे अधिक हैं। सुप्त जीवों की अपेक्षा समवहत (समुद्घात वाले) जीव संख्यातगुणे अधिक हैं, क्योकि बहुत-से पर्याप्तक और अपर्याप्तक जीव सदा मारणान्तिक समुद्घात करते हुए पाए जाते हैं। समवहत जीवों से सातावेदक जीव संख्यातगुणे हैं; क्योंकि आयुष्यबन्धक, अपर्याप्तक और सुप्त जीवों में भी साता का वेदन करने वाले उपलब्ध होते हैं। सातावेदकों की अपेक्षा इन्द्रियोपयुक्त जीव संख्यातगुणे अधिक हैं, क्योंकि इन्द्रियों का उपयोग लगाने वाले सातावेदकों के अतिरिक्त असातावेदकों में भी पाए जाते हैं। उनकी अपेक्षा अनाकारोपयोगयुक्त जीव संख्यातगुणे हैं, क्योंकि इन्द्रियोपयोग वालों और नो-इन्द्रियोपयोग वालों; दोनों में अनाकारोपयोग पाया जाता है। अनाकारोपयुक्तों की अपेक्षा साकारोपयुक्त जीव संख्यातगुणे अधिक हैं, क्योंकि अनाकारोपयोग की अपेक्षा साकारोपयोग का काल अधिक है। साकारोपयुक्त जीवों की अपेक्षा नो-इन्द्रियोपयोग-उपयुक्त जीव विशेषाधिक हैं; क्योंकि इनमें नो-इन्द्रियोपयोग और अनाकारोपयोग वाले दोनों सम्मिलित हैं। इनकी अपेक्षा असातावादेक विशेषाधिक हैं, क्योंकि इन्द्रियोपयोग युक्त जीव भी असातावेदक होते हैं। असातावेदकों से असमवहत