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________________ २९२] [ प्रज्ञापना सूत्र अपेक्षा भी वे ऊर्ध्वलोक में (ऊर्ध्वलोक नामक प्रतरगत) मनुष्यस्त्रियाँ संख्यातगुणी अधिक हैं; क्योंकि सौमनस आदि वनों में क्रीड़ार्थ बहुत-सी विद्याधरियों का गमन सम्भव है। अधोलोक में उनकी अपेक्षा भी संख्यातगुणी हैं, क्योंकि वहाँ स्वस्थान होने में प्रचुरतर होती हैं। उनकी अपेक्षा भी तिर्यग्लोक में वे संख्यातगुणी हैं, क्योंकि वहाँ क्षेत्र भी संख्यातगुणा अधिक है, और स्वस्थान भी है। (४) देवगति के जीवों का अल्पबहुत्व -क्षेत्र की अपेक्षा से सबसे कम देव ऊर्ध्वलोक में हैं, क्योंकि वहाँ वैमानिक जाति के देव ही रहते हैं, और वे थोड़े हैं, और जो भवनपति आदि तीर्थंकरों के जन्मोत्सवादि पर मन्दरपर्वतादि पर जाते हैं, वे भी स्वल्प ही होते हैं, इस कारण सबसे थोड़े देव ऊर्ध्वलोक में हैं। उनकी अपेक्षा ऊर्ध्वलोक-तिर्यग्लोकसंज्ञक दो प्रतरों में संख्यातगुणे देव हैं; ये दोनों प्रतर ज्योतिष्कदेवों के निकटवर्ती हैं, अतएव उनके स्वस्थान हैं। इसके अतिरिक्त भवनपति, वाणव्यन्तर और ज्येतिष्कदेव सुमेरु आदि पर गमन करते हैं; अथवा सौधर्म आदि कल्पों के देव अपने स्थान में आते-जाते हैं; या सौधर्म आदि देवलोकों के देवरूप में उत्पन्न होने वाले देव, जो देवायु का वेदन कर रहे हैं, वे जब अपने उत्पत्तिदेश में जाते हैं, तब पूर्वोक्त दोनों प्रतरों का स्पर्श उन्हें होता है। ऐसे देव पूर्वोक्त देवों से असंख्यतगुणे अधिक होते हैं। उनकी अपेक्षा त्रैलोक्य में (लोकत्रयस्पर्शी) देव संख्यातगुणे हैं, क्योंकि भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव तथारूप विशेष प्रयत्न से जब वैक्रियसमुद्घात करते हैं, तब तीनों लोकों का स्पर्श करते हैं। वे पर्वोक्त प्रतरद्वय-संस्पर्शी देवों से संख्यातगणे अधिक होते हैं। उनकी अपेक्षा अधोलोक-तिर्यग्लोक प्रतरद्वय का स्पर्श करने वाले देव संख्यातगुणे अधिक हैं, क्योंकि ये दोनों प्रतर भवनपति और वाणव्यन्तर देवों के निकटवर्ती होने से स्वस्थान हैं, तथा बहुत-से स्वभवनस्थित भवनपतिदेव तिर्यग्लोक में गमनागमन करते हैं, उद्वर्तन करते हैं; तथा वैक्रिय समुद्घात करते हैं; अथवा तिर्यग्लोकवर्ती पंचेन्द्रियतिर्यञ्च या मनुष्य भवनपतिरूप में उत्पन्न होने वाले होते हैं, और भवनपति की आयु का वेदन करते हैं, तब उनके पूर्वोक्त दोनों प्रतरों का स्पर्श होता हैं। ऐसे जीव बहुत होने के कारण संख्यातगुणे कहे गए हैं। उनकी अपेक्षा अधोलोक में देव संख्यातगुणे हैं, क्योंकि अधोलोक भवनपतिदेवों का स्वस्थान है। उनकी अपेक्षा तिर्यग्लोक में रहने वाले देव संख्यातगुणे अधिक हैं, क्योंकि तिर्यग्लोक ज्योतिष्क और वाणव्यन्तरदेवों का स्वस्थान है। देवियों का अल्पबहुत्व -देवियों का अल्पबहुत्व भी सामान्यतया देवसूत्र की तरह समझ लेना चाहिए । भवनपति आदि देव-देवियों का पृथक्-पृथक् अल्पबहुत्व – (१) भवनपतिदेव सबसे कम ऊर्ध्वलोक में हैं; क्योंकि, कोई-कोई भवनपतिदेव अपने वैभव के संगतिकदेव की निश्रा से सौधर्मादि देवलोकों में जाते हैं। कई-कई मेरुपर्वत पर तीर्थंकरजन्ममहोत्सवादि के निमित्त से तथा अंजन, दधिमुख आदि पर्वतों पर अष्टाह्निक महोत्सव के निमित्त से एवं कई मन्दरादि पर क्रीड़ा के निमित्त जाते हैं। परन्तु ये सब स्वल्प होते हैं; इसलिए ऊर्ध्वलोक में भवनपतिदेव सबसे कम हैं। १. प्रज्ञापनाासूत्र. मलय. वृत्ति, पत्रांक १४६ से १४८ तक
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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