SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 362
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय बहुवक्तव्यतापद] [२६१ प्रमाण ही है, अतएव बहुत ही अल्पकाल होने से प्रश्न के समय वे थोड़े से पाए जाते हैं। उनकी अपेक्षा सम्यग्दृष्टि जीव अनन्तगुणे हैं, क्योंकि सिद्ध अनन्त हैं और वे सम्यग्दृष्टियों में ही सम्मिलित हैं। सम्यग्दृष्टियों की अपेक्षा मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तगुणे हैं, क्योंकि वनस्पतिकायिक आदि जीव सिद्धों से अनन्तगुणे हैं और वनस्पतिकायिक मिथ्यादृष्टि ही होते हैं। दसवाँ ज्ञानद्वार : ज्ञान और अज्ञान की अपेक्षा जीवों का अल्पबहुत्व २५७. एतेसि णं भंते! जीवाणं आभिणिबोहियणाणीणं सुतणाणीणं ओहिणाणीणं मणपज्जवणाणीणं केवलणाणीण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा मणपज्जवणाणी १, ओहिणाणी असंखेज्जगुणा २, आभिणिबोहियणाणी सुयणाणी दो वि तुल्ला विसेसाहिया ३, केवलणाणी अणंतगुणा ४ । [२५७ प्र.] भगवन् ! आभिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी, अवधिज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी और केवलज्ञानी जीवों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य, अथवा विशेषाधिक है ? [२५७ उ.] गौतम! १. सबसे अल्प मनः पर्यवज्ञानी हैं, २. (उनसे) अवधिज्ञानी असंख्यात-गुणे हैं, ३: आभिनिबोधिक (मति) ज्ञानी और श्रुतज्ञानी; ये दोनों तुल्य हैं और (अवधिज्ञानियों से) विशेषाधिक हैं, ४. (उनसे) केवलज्ञानी अनन्तगुणे हैं। २५८. एतेसि णं भंते! जीवाणं मइअण्णाणीणं सुतअण्णाणीणं विहंगणाणीण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा विभंगणाणी १, मइअण्णाणी सुतअण्णाणी दो वि तुल्ला अणंतगुणा २। [२५८ प्र.] भगवन् ! इन मति-अज्ञानी, श्रुत-अज्ञानी और विभंगज्ञानी जीवों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक होते हैं ? [२५८ उ.] गौतम! १. सबसे थोड़े विभंगज्ञानी हैं, २. मति-अज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी दोनों तुल्य हैं और (विभंगज्ञानियों से) अनन्तगुणे हैं। २५९. एतेसि णं भंते! जीवाणं आभिणिबोहियणाणीणं सुयणाणीणं ओहिणाणीणं मणपज्जवणाणीणं केवलणाणीणं मतिअण्णाणीणं सुतअण्णाणीण विभंगनाणीण य कतरे कत्तरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? __गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा मणपज्जवणाणी १, ओहिणाणी असंखेज्जगुणा २, आभिणिबोहियणाणी सुतणाणी य दो वि तुल्ला विसेसाहिया ३, विहंगणाणी असंखेज्जगुणा ४, केवलणाणी अणंतगुणा ५, मइअण्णाणी सुतअण्णाणी य दो वि तुल्ला अणंतगुणा ६॥ दारं १०॥ १. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति पत्रांक १३७
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy