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तृतीय बहुवक्तव्यतापद ]
वणस्सइकाइयाणं तसकाइयाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?
गोयमा! सव्वत्थोवा तसकाइया पज्जत्तगा १, तसकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा २, तेउकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा ३, पुढविकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया ४, आउकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया ५, वाउकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया ६, तेउकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा ७, पुढविकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया ८, आउकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया ९, वाउकाइया पज्जत्तगा विसेसाहिया १०, वणस्सइकाइयां अणंतगुणा ११, सकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया १.२, वणप्फतिकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा १३, सकाइया अपज्जत्तगा विसेसाहिया १३, सकाइया विसेसाहिया १५ ।
[२३६ प्र.] भगवन्! इन सकायिक, पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और त्रसकायिक पर्याप्तक और अपर्याप्तक में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ?
[२३६ उ.] गौतम ! १. सबसे अल्प त्रसकायिक पर्याप्तक हैं, २. ( उनसे ) त्रसकायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं, ३. (उनसे) तेजस्कायिक अपर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं, ४. ( उनसे) पृथ्वीकायिक अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं, ५. (उनसे ) अप्कायिक अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं, ६. ( उनसे) वायुकायिक अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं, ७. (उनसे ) तेजस्कायिक पर्याप्तक संख्यातगुणे हैं, ८. ( उनसे) पृथ्वीकायिक पर्याप्तक विशेषाधिक हैं, ९. ( उनसे) अप्कायिक पर्याप्तक विशेषाधिक हैं, १०. ( उनसे) वायुकायिक पर्याप्तक विशेषाधिक हैं, ११. ( उनसे) वनस्पतिकायिक अपर्याप्तक अनन्तगुणे हैं, १२. ( उनसे ) सकायिक अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं, १३. ( उनसे) वनस्पतिकायिक पर्याप्तक संख्यातगुणे हैं, १४. ( उनसे ) सकायिक पर्याप्तक विशेषाधिक हैं, १५. और ( उनसे भी ) सकायिक विशेषाधिक हैं ।
विवेचन – चतुर्थ कायद्वार : काय की अपेक्षा से सकायिक, अकायिक एवं षट्कायिक जीवों का अल्पबहुत्व — प्रस्तुत पांच सूत्रों (सू. २३२ से २३६ तक) में काय की अपेक्षा षट्कायिक, सकायिक, तथा अकायिक जीवों का समुच्चयरूप में, इनके अपर्याप्तकों तथा पर्याप्तकों का एवं पृथक्-पृथक् एवं समुदित पर्याप्तक, अपर्याप्तक जीवों का अल्पबहुत्व प्रतिपादित किया गया है।
(१) षट्कायिक, सकायिक, अकायिक जीवों का अल्पबहुत्व - सबसे थोड़े सकायिक हैं, क्योंकि त्रसकायिकों में द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीव हैं, वे अन्य कायों (पृथ्वीकायादि) की अपेक्षा अल्प हैं। उनसे तेजस्कायिक असंख्येयगुणे हैं, क्योंकि वे असंख्येय लोकाकाश-प्रदेश-प्रमाण हैं। उनसे पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं, क्योंकि वे प्रचुर असंख्येय लोकाकाश-प्रदेश - प्रमाण हैं। उनसे अप्कायिक विशेषाधिक हैं, क्योंकि वे प्रचुरतर असंख्येय लोकाकाश-प्रदेश - प्रमाण हैं। उनसे वायुयिक विशेषाधिक हैं, क्योंकि वे प्रचुरतर असंख्येय लोकाकाश-प्रदेश प्रमाण हैं । उनकी अपेक्षा अकायिक