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[ प्रज्ञापना सूत्र
पज्जत्तगा विसेसाहिया ३, तेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया ४, पंचेंदिया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा ५, चउरिंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया ६, तेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया ७, बेंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया ८, एगेंदिया अपज्जत्तगा अनंतगुणा ९, सइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया १०, एगिंदिया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा ११, सइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया १२, सइंदिया विसेसाहिया १३ । दारं ३॥
[ २३१ प्र.] भगवन्! इन सेन्द्रिय, एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय के पर्याप्तक और अपर्याप्तक जीवों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ?
[२३१ उ.] गौतम ! १, सबसे अल्प चतुरिन्द्रिय पर्याप्तक हैं । २. ( उनसे) पंचेन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक हैं । ३. ( उनसे ) द्वीन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक हैं । ४. ( उनसे ) त्रीन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक हैं । ५. ( उनसे) पंचेन्द्रिय अपर्याप्तक असंख्यातगुणे हैं । ६. ( उनसे ) चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तक विरोषाधिक हैं । ७. ( उनसे ) त्रीन्द्रिय अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं । ८. ( उनसे ) द्वीन्द्रिय अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं । ९. (उनसे) एकेन्द्रिय अपर्याप्तक अनन्तगुणे हैं । १०. ( उनसे) सेन्द्रिय अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं । ११. ( उनसे ) केन्द्रिय पर्याप्त संख्यातगुणे हैं १२, ( और उनसे ) सेन्द्रिय पर्याप्तक विशेषाधिक हैं १३. ( तथा उनसे भी) सेन्द्रिय (इन्द्रियवान्) विशेषाधिक हैं। तृतीय द्वार ॥ ३ ॥
विवेचन– तृतीय इन्द्रियद्वार : इन्द्रियों की अपेखा से जीवों का अल्पबहुत्व - प्रस्तुत पांच सूत्रों (सू. २२७ से २३१ तक) में इन्द्रियों की अपेक्षा से सेन्द्रिय, अनिन्द्रिय तथा एकेन्द्रिय से लेकर पंचेंन्द्रिय जीवों तक के अल्पबहुत्व की प्ररूपणा विभिन्न पहलुओं से की गई है।
(१) सेन्द्रिय — अनिन्द्रिय तथा एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के जीवों का अल्पबहुत्वसबसे कम पंचेन्द्रिय ( पांच इन्द्रियों वाले नारक, तिर्यंच, मनुष्य और देव) जीव हैं, क्योंकि वे संख्यात कोटा - कोटी - योजनप्रमाण विष्कम्भसूची से प्रमित प्रतर के असंख्येयभागवर्ती असंख्येय श्रेणीगत आकाशप्रदेशों की राशि - प्रमाण हैं। उनसे विशेषाधिक चार इन्द्रियों वाले भ्रमर आदि चतुरिन्द्रिय जीव हैं; क्योंकि वे विष्कम्भसूची के प्रचुर संख्येयकोटाकोटीयोजनप्रमाण हैं। उनसे त्रीन्द्रिय ( चींटी आदि तीन इन्द्रियों वाले) जीव विशेषाधिक हैं, क्योंकि वे विष्कम्भसूची से प्रचुरतर संख्यात कोटाकोटीयोजनप्रमाण हैं । द्वीन्द्रिय (शंख आदि दो इन्द्रियों वाले) जीव उनकी अपेक्षा विशेषाधिक हैं, क्योंकि वे विष्कम्भसूची के प्रचुरतम संख्येयकोटाकोटीयोजनप्रमाण हैं । द्वीन्द्रियों से अनिन्द्रिय (सिद्ध) जीव अनन्तगुणे है, क्योंकि वे अनन्त हैं । अनिन्द्रियों से एकेन्द्रिय जीव अनन्तगुणे हैं, क्योंकि अकेले वनस्पतिकायिक जीव सिद्धों से अनन्तगुणे अधिक हैं । एकेन्द्रिय जीवों से भी सेन्द्रिय (सभी इन्द्रियों वाले) जीव विशेषाधिक हैं, क्योंकि द्वीन्द्रिय आदि सभी जीवों का उसमें समावेश हो जाता है। यह समुच्चय जीवों का अल्पबहुत्व हुआ।
(२) अपर्याप्त समुच्चय जीवों का अल्पबहुत्व — अपर्याप्त पंचेन्द्रिय जीव सबसे थोड़े हैं, क्योंकि