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[प्रज्ञापना सूत्र २२६. एतेसि णं भंते! नेरइयाणं तिरिक्खजोणियाणं तिरिक्खजोणिणीणं मणुस्साणं मणुस्सीणं देवाणं देवीणं सिद्धाण य अट्ठगति समासेणं कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा?
___ गोयमा! सव्वत्थोवाओ मणुस्सीओ १, मणुस्सा असंखेज्जगुणा २, नेरइया असंखेज्जगुणा ३, तिरिक्खजोणिणीओ असंखेजगुणाओ ४, देवा असंखेज्जगुणा ५, देवीओ संखेज्जगुणाओ ६, सिद्धा अणंतगुणा ७, तिरिक्खजोणिया अणंतगुणा ८। दारं २॥ __[२२६ प्र.] भगवन् ! इन नैरयिकों, तिर्यञ्चों, तिर्यचिनियों, मनुष्यों, मनुष्यस्त्रियों, देवों देवियों
और सिद्धों का आठ गतियों को अपेक्षा से, संक्षेप में, कौन किनसे अल्प हैं, बहुत हैं, तुल्य हैं अथवा विशेषाधिक हैं ?
[२२६ उ.] गौतम! १. सबसे कम मानुषी (मनुष्यस्त्री) हैं, २. (उनसे) मनुष्य असंख्यातगुणे हैं, ३. (उनसे) नैरयिक असंख्यातगुणे हैं, ४. (उनसे) तिर्यञ्चनियां असंख्यातगुणी हैं, ५. (उनसे) देव असंख्यातगुणे हैं, ६. (उनसे) देवियां संख्यातगुणी हैं, ७ (उनसे) सिद्ध अनन्तगुणे हैं, और ८. (उनसे भी) तिर्यञ्चयोनिक अनन्तगुणे हैं।
द्वितीय द्वार ॥२॥ विवेचन–द्वितीय गतिद्वार-पांच या आठ गतियों की अपेक्षा जीवों का अल्पबहुत्व—प्रस्तुत दो सूत्रों (सू. २२५-२२६) में नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य, देव और सिद्धि, इन पांच गतियों की अपेक्षा से तथा नारक, तिर्यंच, तिर्यंचनी, मनुष्य, मानुषी, देव, देवी और सिद्ध, इन आठ गतियों की अपेक्षा से जीवों के अल्पबहुत्व का निरूपण किया गया है।
___ पांच गतियों की अपेक्षा से अल्पबहुत्व—गतियों की अपेक्षा से सबसे थोड़े मनुष्य हैं, क्योंकि वे ९६ छेदनक-छेद्यराशिप्रमाण ही हैं। उनसे नैरयिक असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि वे अंगुलप्रमाण क्षेत्र के प्रदेशों की राशि के प्रथम वर्गमूल का द्वितीय वर्गमूल से गुणाकार करने पर जो प्रदेशराशि होती है, उतनी ही घनीकृतलोक की एकप्रादेशिकी क्षेणियों में जितने आकाशप्रदेश होते हैं, उतना ही नारकों का प्रमाण है। नैरयिकों की अपेक्षा देव असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि व्यन्तर और ज्योतिष्क देव प्रतर की असंख्यातभागवर्ती श्रेणियों के आकाशप्रदेशों की राशि के तुल्य हैं। सिद्ध उनसे भी अनन्तगुणे हैं, क्योंकि वे अभव्यों से अनन्तगुणे हैं। सिद्धों से तिर्यञ्च अनन्तगुणे हैं, क्योंकि अकेले वनस्पतिकायिक जीव ही सिद्धों से अनन्तगुणे हैं।
आठ बोलों की अपेक्षा से अल्पबहुत्व—पांच गतियों के ही अवान्तर भेद करके प्रस्तुत आठ गतियां बताकर उनकी दृष्टि से अल्पबहुत्व का निरूपण करते हैं सबसे कम मानुषी (मनुष्यस्त्रियां) हैं, क्योंकि उनकी संख्या संख्यातकोटाकोटी प्रमाण है। उनसे मनुष्य असंख्यातगुणे अधिक हैं; क्योंकि १. 'अट्ठगति अणुवाएणं समासेणं' यह पाठान्तर मिलता है। -सं. २. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति पत्रांक ११९