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________________ [ प्रज्ञापना सूत्र २२४] पहले बताया जा चुका है। उनसे क्रमश: पंचम, चतुर्थ, तृतीय, द्वितीय और प्रथम नरक के पूर्वपश्चिमोत्तरदिग्वर्ती तथा दक्षिणदिग्वर्ती नैरयिक अनुक्रम से असंख्यातगुणे समझ लेने चाहिए। (१२) तिर्यञ्चपञ्चेन्द्रिय जीवों का अल्पबहुत्व - तिर्यञ्चपञ्चेन्द्रिय जीवों का अल्पबहुत्व अप्कायिक सूत्र की तरह समझ लेना चाहिए । (१३) मनुष्यों का अल्पबहुत्व - सबसे कम मनुष्य दक्षिण और उत्तर दिशा में हैं, क्योंकि इन दिशाओं में पांच भरत और पांच ऐरावत क्षेत्र छोटे ही हैं। उनसे पूर्वदिशा में संख्यातगुणे हैं, क्योंकि वहाँ क्षेत्र संख्यातगुणे बड़े हैं। पश्चिम दिशा में इनसे भी विशेषाधिक हैं, क्योंकि वहाँ अधोलौकिक ग्राम हैं, जिनमें स्वभावतः मनुष्यों की बहुलता है । (१४) भवनवासी देवों का अल्पबहुत्व - सबसे अल्प भवनवासी देव पूर्व और पश्चिम में हैं, क्योंकि इन दोनों दिशाओं में उनके भवन थोड़े हैं । इनकी अपेक्षा उत्तर में असंख्यातगुणे अधिक हैं, क्योंकि स्वस्थान होने से वहाँ भवन बहुत हैं । दक्षिणदिशा में इनसे भी असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि वहाँ प्रत्येक निकाय के चार-चार लाख भवन अधिक हैं तथा बहुत-से कृष्णपाक्षिक इसी दिशा में उत्पन्न होते हैं, अतः वे असंख्यातगुणे अधिक हैं । (१५) वाणव्यन्तर देवों का अल्पबहुत्व - जहाँ पोले स्थान हैं, वहीं प्रायः व्यन्तरों का संचार होता है, पूर्वदिशा में ठोस स्थान अधिक हैं, इस कारण वहाँ व्यन्तर थोड़े ही हैं। पश्चिमदिशा में उनसे विशेषाधिक हैं, क्योंकि वहाँ अधोलौकिक ग्रामों में पोल अधिक हैं, उनकी अपेखा उत्तरदिशा में विशेषाधिक हैं, क्योंकि वहाँ उनके स्वस्थान होने से नगरावासों की बहुलता है । उत्तर की अपेक्षा दक्षिण में विशेषाधिक. हैं, क्योंकि दक्षिणदिशा में उनके नगरावास अत्यधिक हैं । (१६) ज्योतिष्क देवों का अल्पबहुत्व - सबसे कम ज्योतिष्क देव पूर्व एवं पश्चिम दिशाओं में होते हैं, क्योंकि इन दोनों दिशाओं में चन्द्र और सूर्य के उद्यान जैसे द्वीपों में ज्योतिष्क देव अल्प ही होते हैं। दक्षिण में उनकी अपेक्षा विशेषाधिक हैं, क्योंकि दक्षिण में उनके विमान अधिक हैं और कृष्णपाक्षिक दक्षिणदिशा में ही होते हैं। उत्तरदिशा में उनसे भी विशेषाधिक हैं, क्योंकि उत्तर में मानससरोवर में ज्योतिष्क देवों के क्रीड़ास्थल बहुत हैं । क्रीड़ारत होने के कारण वहाँ ज्योतिष्क देव सदैव रहते हैं । मानससरोवर के मत्स्य आदि जलचरों को अपने निकटवर्ती विमानों को देख कर जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न होता है, जिससे वे किंचित् व्रत अंगीकार कर अशनादि का त्याग करके निदान के कारण वहाँ उत्पन्न होते हैं । इस कारण उत्तर में दक्षिण की अपेक्षा ज्योतिष्क देव विशेषाधिक हैं। (१७) सौधर्म आदि वैमानिक देवों का अल्पबहुत्व — वैमानिक देव सौधर्मकल्प में सबसे कम पूर्व और पश्चिम में हैं, क्योंकि आवलिकाप्रविष्ट विमान तो चारों दिशाओं में समान हैं, किन्तु बहुसंख्यक और असंख्यातयोजन - विस्तृत पुष्पावकीर्ण विमान दक्षिण और उत्तर में ही हैं, पूर्व और पश्चिम में नहीं। इसी कारण पूर्व और पश्चिम में सबसे कम वैमानिक देव हैं। इनकी अपेक्षा उत्तर में वे
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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