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________________ २१६ ] [ प्रज्ञापना सूत्र [ ३ ] दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा तेडक्काइया दाहिणुत्तरेणं, पुरत्थिमेणं संखेज्जगुणा, पच्चत्थिमेणं विसेसाहिया । पूर्व [२१४-३] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े तेजस्कायिक जीव दक्षिण और उत्तर में हैं, में उनसे) संख्यातगुणा अधिक हैं, ( और उनसे भी ) पश्चिम में विशेषाधिक हैं । [४] दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा वाउकाइया पुरत्थिमेणं, पच्चत्थिमेणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया, दाहिणेणं विसेसाहिया । [२१४-४] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम वायुकायिक जीव पूर्वदिशा में हैं, उनसे विशेषाधिक पश्चिम में हैं, उनसे विशेषाधिक उत्तर में हैं और उनसे भी विशेषाधिक दक्षिण में हैं । [ ५ ] दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा वणस्सइकाइया पच्चत्थिमेणं, पुरत्थिमेणं विसेसाहिया, दाहिणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया । [२१४-५] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े वनस्पतिकायिक जीव पश्चिम में हैं, ( उनसे) विशेषाधिक पूर्व में हैं, ( उनसे) विशेषाधिक दक्षिण में हैं, ( और उनसे भी) विशेषाधिक उत्तर में हैं । २१५ [ १ ] दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा बेइंदिया पच्चत्थिमेणं, पुरत्थिमेणं विसेसाहिया, दक्खिणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया । [२१५ - १] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम द्वीन्द्रिय जीव पश्चिम में हैं, ( उनसे) विशेषाधिक पूर्व में हैं, ( उनसे) विशेषाधिक दक्षिण में हैं, ( और उनसे भी ) विशेषाधिक उत्तरदिशा में हैं । [ २ ] दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा तेइंदिया पच्चत्थिमेणं, पुरत्थिमेणं विसेसाहिया, दाहिणेणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया । [२१५-२] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम त्रीन्द्रिय जीव पश्चिमदिशा में हैं, (उनसे) विशेषाधिक पूर्व में हैं, ( उनसे) विशेषाधिक दक्षिण में हैं और ( उनसे भी) विशेषाधिक उत्तर में हैं। [३] दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा चउरिंदिया पच्चत्थिमेणं, पुरत्थिमेणं विसेसाहिया, दाहिणेणं विसेसाहिया, उत्तरेणं विसेसाहिया । [२१५-३] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम चतुरिन्द्रिय जीव पश्चिम में हैं, ( उनसे) विशेषाधिक पूर्व दिशा में हैं, ( उनसे ) विशेषाधिक दक्षिण में हैं (और उनसे भी) विशेषाधिक उत्तरदिशा में हैं । २१६. [१] दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा नेरइया पुरत्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं, दाहिणेणं, असंखेज्जगुणा । [२१६ - १] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े नैरयिक पूर्व, पश्चिम और उत्तर दिशा में हैं, (उनसे) असंख्यातगुणे अधिक दक्षिणदिशा में हैं । [ २ ] दिसाणुवाएणं सव्वत्थोवा रयणप्पभापुढविनेरइया पुरत्थिम-पच्चत्थिम-उत्तरेणं, दाहिणेणं असंखेज्जगुणा ।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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