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________________ १६२] [प्रज्ञापना सूत्र भर्तृत्व (पोषणाकर्तृत्व), महत्तरत्व (महानता), आज्ञेश्वरत्व एवं सेनापत्य करते-कराते तथा पालन करतेकराते हुए, महान् आहत से (बड़े जोरों से अथवा महान् व्याघातरहित) नृत्य, गीत, वादित, तल, ताल, त्रुटित और घनमृदंग के बजाने से उत्पन्न महाध्वनि के साथ दिव्य एवं उपभोग्य भोगों का उपभोग करते हुए विहरण करते हैं। [२] चमर-बलिणो यऽत्थ दुवे असुरकुमारिंदा असुरकुमाररायाणो परिवसंति काला महानीलसरिसा णीलगुलिय-गवल-अयसिकुसुमप्पगासा वियसियवत्तणिम्मलईसीसित-रत्ततंबणयणा गरु लाययउज्जतुंगणासा ओयवियसिलप्पवालबिंबफलसन्निभाहरोट्ठा पंडरससिसगलविमल- निम्मलदहि-घण-संख-गोखीर-कुंद-दगरय-मुणालियाधवलदंतसेढी हुयवहणिद्धतधोयतत्ततवणिजरत्ततल-तालु-जीहा अंजण-घणकसिणरुयगरमणिज्जणिद्धकेसा वामेयकुंडलधरा, अद्दचंदणाणुलित्तगत्ता, ईसीसिलिंध-पुप्फपगासाइं असंकिलिट्ठाई सुहुमाइं वत्थाई पवर परिहिया, वयं च पढमं समइक्कंता, बिइयं तु असंपत्ता, भद्दे जोव्वण्णे वट्टमाणा, तलभंगयतुडित-पवरभूषण-निम्नलमणि-रयणमंडितभुया दसमुद्दा-मंडियग्गहत्था चूडामणिचित्तचिंधगता सुरूवा महिड्ढीया महज्जुईया महायसा महाबला महाणुभागा महासोक्खा हारविराइयवच्छा कडयतुडियर्थभियभुया अंगद-कुंडल-मट्ठगंडतलकण्णपीढधारी विचित्तहत्थाभरणा विचित्तमाला-मउली कल्लाणगपवरवत्थपरिहिया कल्लाणगपवरमल्लाणुलेवणा भासुरबोंदी पलंबवणमालधरा दिव्वेणं वण्णेणं दिव्वेण गंधेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संघयणेणं दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्ढीए दिव्वाए जुतीए दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा। ते णं तत्थ साणं साणं भवणावाससतसहस्साणं साणं साणं सामाणियसाहस्सीणं साणं साणं तायत्तीसाणं साणं साणं लोगपालाणं साणं साणं अग्गमहिसीणं साणं साणं परिसाणं साणं साणं अणियाणं साणं साणं अणियाधिवतीणं साणं साणं आतरक्खदेवसाहस्सीणं अण्णेसिं च बहूणं भवणवासीणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्तं भट्टित्तं महयरगत्तं आणाईसरसेणावच्चं कारेमाणा पालेमाणा महताऽहतनट्ट-गीत-वाइततंतीतल-ताल तुडित-घणमुइंगपडुप्पवाइतरवेणं दिव्वाइं भोगभोगाइं भुंजमाणा विहरंति। [१७८-२] यहाँ (इन्हीं स्थानों में) जो दो असुरकुमारों के राजा -चमरेन्द्र और बलीन्द्र निवास करते हैं, वे काले, महानील के समान, नील की गोली, गवल (भैंस के सींग), अलसी के फूल के समान (रंगवाले), विकसित कमल (शतपत्र) के समान निर्मल कहीं श्वेत, रक्त एवं ताम्रवर्ण के नेत्रों वाले, गरुड के समान विशाल सीधी और ऊंची नाक वाले, पुष्ट या तेजस्वी (उपचित) मूंगा तथा बिम्बफल के समान अधरोष्ठ वाले श्वेत विमल एवं निर्मल, चन्द्रखण्ड, जमे हुए दही, शंख, गाय के दूध, कुन्द, जलकण और मृणालिका के समान धवल दन्तपंक्ति वाले, अग्नि में तपाये और धोये हुए तपनीय (सोने) के समान लाल तलवों, तालु तथा जिह्वा वाले, अंजन तथा मेघ के समान काले, रुचकरत्न के समान
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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