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________________ १५२] [प्रज्ञापना सूत्र एवं अशुभ या सुखरहित (असुख) नरक हैं; इन नरकों में अशुभ वेदनाएँ होती हैं। इन (नरकावासों) में तमःप्रभापृथ्वी के पर्याप्त एवं अपर्याप्त नारकों के स्थान कहे हैं। उपपात की अपेक्षा से (वे नरकावास) लोक के असंख्यातवें भाग में (हैं); समुद्घात की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में (हैं); और स्वस्थान की अपेक्षा से (भी वे) लोक के असंख्यातवें भाग में (हैं); जहाँ कि बहुत-से तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिक निवास करते हैं। ___(वे नैरयिक) काले, काली प्रभा वाले, गम्भीरलोमहर्षक, भयानक, उत्त्रासदायक, वर्ण से अतीव कृष्ण कहे गए हैं। हे आयुष्मन् श्रमणो! वे (वहाँ) सदैव भयभीत, सदैव त्रस्त, नित्य त्रासित, सदैव उद्विग्न, नित्य परम अशुभ तत्सम्बद्ध नरकभय का सतत प्रत्यक्ष अनुभव करते हुए रहते हैं। १७४. कहि णं भं! तमतमापुढविनेरइयाणं पजत्ताऽपजत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा! तमतमाए पुढवीए अट्टोत्तरजोयणसतसहस्सबाहल्लाए उवरिं अद्धतेवण्णं जोयणसहस्साई ओगाहित्ता हिट्ठा वि अद्धतेवण्णं जोयणसहस्साई वज्जेत्ता मज्झे तिसु जोयणसहस्सेसु, एत्थ णं तमतमापुढविनेरइयाणं पजत्ताऽपजत्ताणं पंचदिसिं पंच अणुत्तरा महइमहालया महाणिरया पण्णत्ता, तं जहा काले १ महाकाले २ रोरुइ ३ महारोरुए ४ अपइट्ठाणे ५। ते णं णरगा अंतो वट्टा बाहिं चउरंसा अहे खुरप्पसंठाणसंठिता निच्चंधयारतमसा ववगयगह-चंद-सूर-नक्खत्तजोइसपहा मेद-वसा-पूयपडल-रुहिर-मंसचिक्खल्ललित्ताणुलेवणतला असुई वीसा परम-दुब्भिगंधा कक्खडफासा दुरहियासा असुभा नरगा असुभा नरगेसु वेयणाओ, एत्थ णं तमतमापुढविनेरइयाणं पज्जत्ताऽपजत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। उववाएणं लोयस्स असंखेजइभागे, समुग्घाएणं लोयस्स असंखेजइभागे, सट्ठाणेणं लोयस्स असंखेजइभागे। ____ तत्थ णं बहवे तमतमापुढविनेरइया परिवसंति काला कालोभासा गंभीरलोमहरिसा भीमा उत्तासणया परमकिण्हा वण्णेणं पण्णत्ता समणाउसो! ते णं णिच्चं भीता णिच्चं तत्था णिच्चं तसिया णिच्चं उव्विग्गा णिच्चं परममसुहं संबद्धं णरगभयं पच्चणुभवमाणा विहरंति। आसीतं १ बत्तींस २ अट्ठावीसं च होइ ३ वीस च ४। अट्ठारस ५ सोलसंग ६ अठुत्तरमेव ७ हिट्ठिमया॥१३३॥ अडहुत्तरं च १ तीसं २ छव्वीसं चेव सतसहस्सं तु ५। अट्ठारस ४ सोलसगं ५ चोइसमहियं तु छट्ठीए ६॥१३४॥ अद्धतिवण्णसहस्सा उवरिमऽहे वज्जिऊण तो भणियं। माझे उ तिसु सहस्सेसु होंति नरगा तमतमाए ७॥१३५॥
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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