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[प्रज्ञापना सूत्र
___उपपात की अपेक्षा से (वे नरकावास) लोक के असंख्यातवें भाग में (हैं); समुद्घात की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में (हैं) और स्वस्थान की अपेक्षा से (वे) लोक के असंख्यातवें भाग में (हैं); जहाँ पंकप्रभापृथ्वी के बहुत-से नैरयिक निवास करते हैं; जो काले, काली प्रभावाले, गम्भीर रोमहर्षक, भयंकर, उत्रासजनक एवं परमकृष्णवर्ण के कहे गए हैं। ___हे आयुष्मन् श्रमणो! वे नारक (वहाँ) सदैव भयभीत, सदा त्रस्त, नित्य परस्पर त्रासित, नित्य उद्विग्न और सदैव सम्बद्ध (निरन्तर) अतीव अशुभ नरकीय वेदना का प्रत्यक्ष अनुभव करते हुए रहते हैं।
१७२. कहि णं भंते! धूमप्पभापुढविनेरइयाणं पजत्ताऽपजत्ताणं ठाणा पण्णता ?
गोयमा! धूमप्पभाए पुढवीए अट्ठारसुत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उवरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हिट्ठा वेगं जोयणसहस्सं वज्जेत्ता मज्झे सोलसुत्तरे जोयणसतसहस्से, एत्थ णं धूमप्पभा पुढविनेरइयाणं तिन्नि निरयावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं।
ते णं णरगा अंतो वट्टा बाहिं चउरंसा अहे खुरप्पसंठाणसंठिता णिच्चंधयारतमसा ववगयगह-चंद-सूर-नक्खत्तजोइसपहा मेद-वसा-पूयपडल-रुहिर-मंसचिक्खिल्ललित्ताणुलेवणतला असुई वीसा परमदुब्भिगंधा काऊअगणिवण्णाभा कक्कडफासा दुरहियासा असुभा नरगा असुभा णरगेसु वेयणाओ, एत्थ णं धूमप्पभापुढविनेरइयाणं पजत्ताऽपजत्ताणं ठाणा पण्णत्ता।
उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, समुग्घाएणं लोयस्स असंखेजइभागे, सट्ठाणेणं लोयस्स असंखेजइभागे। तत्थ णं बहवे धूमप्पभापुढविनेरइया परिवसंति काला कालोभासा गंभीरलोमहरिसा भीमा उत्तासणगा परमकिण्हा वण्णेणं पण्णत्ता समणाउसो!
ते णं णिच्चं भीता णिच्चं तत्था णिच्चं तसिया णिच्चं उब्विग्गा णिच्चं परममसुहं संबद्धं णरगभयं पच्चणुभवमाणा विहरंति। ___ [१७२ प्र.] भगवन् ! धूमप्रभापृथ्वी के पर्याप्त और अपर्याप्त नैरयिकों के स्थान कहाँ (किस प्रदेश में) कहे हैं?
[१७२ उ.] गौतम! एक लाख अठारह हजार योजन मोटी धूमप्रभापृथ्वी के ऊपर के एक हजार योजन को अवगाहन (पार) करके, नीचे के एक हजार योजन (क्षेत्र) को छोड़ कर बीच के एक लाख सोलह हजार योजन प्रदेश में, धूम्रभापृथ्वी के नारकों के तीन लाख नारकावास हैं, ऐसा कहा है।
वे नरक (नारकावास) भीतर से गोल और बाहर से चौकोर हैं, नीचे से छुरे के-से आकार के तीक्ष्ण हैं, (वे) सदैव गाढ अन्धकार से (पूर्ण रहते हैं); वे ग्रह, चन्द्रमा, सूर्य, नक्षत्र आदि ज्योतिष्कों की प्रभा से दूर हैं। उनके तलभाग मेद, चर्बी, मवाद के पटल, रुधिर और मांस के कीचड़ के लेप से लिप्त होते हैं। अतः वे नरक अत्यन्त अपवित्र, बीभत्स, अत्यन्त दुर्गन्धयुक्त, कापोत रंग की जाज्वल्यमान अग्नि के वर्ण के समान, कठोरस्पर्श वाले, दुःसह एवं अशुभ हैं। उन नरकों में अशुभ वेदनाएँ हैं।