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________________ प्रथम प्रज्ञापनापद] [१०७ १२७. से किं तं छउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया ? छउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता। तं जहा—सयंबुद्धछउमत्थखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य बुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीयरायचरित्तारिया य। [१२७ प्र.] छद्मस्थ-क्षीणकषाय-वीतराग-चारित्रार्य कौन हैं ? [१२७ उ.] छद्मस्थ-क्षीणकषाय-वीतराग-चारित्रार्य दो प्रकार के हैं। यथा—स्वयंबुद्ध-छद्मस्थक्षीणकषाय-वीतराग-चारित्रार्य और बुद्धबोधित-छद्मस्थ-क्षीणकषाय-वीतराग-चारित्रार्य । १२८. से किं तं सयंबुद्धछउमत्थखीणकसायवीयरागचरित्तारिया ? सयंबुद्धछ उ मत्थखीणक सायवीयरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता। तं जहापढमसमयसयंबुद्धछउमत्थखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य अपढमसमयसयंबुद्धछउमत्थखीणकसोयवीयरागचरित्तारिया य, अहवा चरिमसमयसयंबुद्धछउमत्थखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य अचरिमसमयसयंबुद्धछउमत्थखीणकसायवीयरागचरित्तारिया य। से त्तं सयंबुद्धछउमत्थखीणकसायवीयरागचरित्तारिया। [१२८. प्र.] वे स्वयंबुद्ध-छद्मस्थ-क्षीणकषाय-वीतराग-चारित्रार्य कौन हैं? __ [१२८ उ.] स्वयंबुद्ध-छद्मस्थ-क्षीणकषाय-वीतराग-चारित्रार्य दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-प्रथमसमय-स्वयंबुद्ध-छद्मस्थ-क्षीणकषाय-वीतराग-चारित्रार्य और अप्रथमसमय-स्वयंबुद्धछद्मस्थ-क्षीणकषाय-वीतराग-चारित्रार्य; अथवा चरमसमय-स्वयंबुद्ध-छद्मस्थ-क्षीणकषाय-वीतरागचारित्रार्य और अचरमसमय-स्वयंबुद्ध-छद्मस्थ-क्षीणकषाय-वीतराग-चारित्रार्य। यह हुआ, उक्त स्वयंबुद्धछद्मस्थ-क्षीणकषाय-वीतराग-चारित्रार्य का वर्णन । १२९. से किं तं बुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया ? बुद्धबोहियछ उमत्थखीणक सायवीतरागचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता। त जहा पढमसमयबुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया य अपढमसमयबुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया य, अहवा चरिमसमयबुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया च अचरिमसमयबुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया य। से तं बुद्धबोहियछउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया। से तं छउमत्थखीणकसायवीतरागचरित्तारिया ? [१२९ प्र.] बुद्धबोधित-छद्मस्थ-क्षीणकषाय-वीतराग-चारित्रार्य कौन हैं ? [१२९ उ.] बुद्धबोधित-छद्मस्थ-क्षीणकषाय-वीतराग-चारित्रार्य दो प्रकार के हैं—प्रथमसमयबुद्धबोधित-छद्मस्थ-क्षीणकषाय-वीतराग-चारित्रार्य और अप्रथमसमय-बुद्धबोधित-छद्मस्थ-क्षीणकषायवीतराग-चारित्रार्य; अथवा चरमसमयबुद्धबोधित-छद्मस्थ-क्षीणकषाय-वीतराग-चारित्रार्य और अचरमसमय
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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