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उत्तरकुरुक्षेत्रों में। इस प्रकार यह अकर्मभूमक मनुष्य की प्ररूपणा हुई ।
९७. [१] से किं तं कम्मभूमया ?
कम्मभूमया पण्णरसविहा पण्णत्ता । तं जहा - पंचहिं भरहेहिं पंचहिं एरवतेहिं पंचहिं महाविदेहेहिं ।
[ प्रज्ञापना सूत्र
[ ९७ - १ प्र.] कर्मभूमक मनुष्य किस प्रकार के हैं ?
[९७-१ उ.] कर्मभूमक मनुष्य पन्द्रह प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं- पांच भरत क्षेत्रों में, पांच ऐरवत क्षेत्रों में और पांच महाविदेहक्षेत्रों में ।
[२] ते समासतो दुविहा पण्णत्ता तं जहा – आरिया य मिलक्खू य ।
[९७-२] वे (पन्द्रह प्रकार के कर्मभूमक मनुष्य) संक्षेप में दो प्रकार के हैं—आर्य और म्लेच्छ । ९८. से किं तं मिलक्खू ?
मिलक्खू' अणेगविहा पण्णत्ता । तं जहा — सग - जवण - चिलाय - सबर - बब्बर- काय - मुरुं - डोड्ड-भडग- णिण्णग-पक्कणिय - कुलक्ख-गोंड - सिंहल - पारस-गांधोडंब - दमिल - चिल्लल-पुलिंदहारोस - डोंब - वोक्काण -गंधाहारग- बहलिय- अज्जल - रोम - पास - पउसा - मलया य चुंचया य मूयलिकोंकणग- मेय- पल्हव - मालव- गग्गर- आभासिय-णक्क चीणा ल्हसिय-खस-खासिय- णेडूरमंढडोंबिलग-लउस-बउस - केक्कया अरवागा हूण-रोसग - मरुग-रुय - विलायविसयवासी य एवसादी । सेत्तं मिलक्खू ।
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[९८ प्र.] म्लेच्छ मनुष्य किस-किस प्रकार के हैं ?
[९८ उ.] म्लेच्छ मनुष्य अनेक प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार — शक, यवन, किरात, शबर, बर्बर, काय, मरुण्ड, उड्ड, भण्डक, (भडक), निन्नक ( निण्णक), पक्कणिक, कुलाक्ष, गोंड, सिंहल, पारस्य (पारसक) आन्ध्र ( क्रौंच), उडम्ब (अम्बडक), तमिल ( दमिल - द्रविड़ ), चिल्लल (चिल्लस या चिल्लक) पुलिन्द, हारोस, डोंब (डोम), पोक्काण (वोक्काण ), गन्धाहारक (कन्धारक), बहलिंक (बाल्हीक), अज्जल (अज्झल), रोम, पास (मास), प्रदुष (प्रकुष), मलय ( मलयाली ) और चंचूक (बन्धुक)
१. प्रवचनसारोद्धार की तीन गाथाओं में म्लेच्छ के बदले अनार्यों के नाम इस प्रकार गिनाए हैं- "सग-जवण - सबरबब्बर-काय-मुरुंडोड्डगोण-पक्कणया । अरबाग होण - रोमय- पारस खसखासिया चेव । १५८३ ॥ दुंबिलय-लउसबोक्स-भिल्लंऽध-पुलिंद-कुंच- भमररुया । कोवाय- चीण- चंचुय- मालव-दमिला कुलग्घा य ॥ १५८४ ॥ केक्यकिराय - हयमुह - खरमुह-गय-तुरय- मिंढयमुहा य । हयकन्ना गयकन्ना अन्ने वि अणारिया बहवे ।। १५८५ ।।'' ''शकाः यवनाः शबराः बर्बरा कायाः मुरुण्डाः उड्डा: गौड्डाः पक्कणगाः अरबागाः हूणाः रोमकाः पारसाः खसाः खासिकाः दुम्बलका: लकुशा: बोक्शा: भिल्लाः अन्ध्राः पुलिन्द्राः कुञ्चाः भ्रमररुचाः कोर्पकाः चीनाः चञ्चुकाः मालवाः द्रविडाः कुलार्घाः केकयाः किराताः हयमुखाः खरमुखाः गजमुखाः तुरङ्गमुखाः मिण्ढकमुखाः हयकर्णाः गजकर्णाश्चेत्येते देषां अनार्याः ।" इति वृतिः । पत्रं ४४५-२ ॥