________________
९२]
[प्रज्ञापना सूत्र
ग्राम आदि के विशेष अर्थ-ग्राम-बाड़ से घिरी हुई बस्ती। नगर–जहाँ अठारह प्रकार के कर न लगते हों। निगम-बहुत से वणिक्जनों के निवास वाली बस्ती। खेट-खेड़ा, धूल के परकोटे से घिरी हुई बस्ती। कर्बट-छोटे से प्राकार से वेष्टित बस्ती। मडम्ब—जिसके आसपास ढाई कोस तक दूसरी बस्ती न हो। द्रोणमुख—जिसमें प्रायः जलमार्ग से ही आवागमन हो या बन्दरगाह । पट्टणजहाँ घोड़ा, गाड़ी या नौका से पहुंचा जाए अथवा व्यापार की मंडी, व्यापारिक केन्द्र। आकर—स्वर्णादि की खान। आश्रम–तापसजनों का निवासस्थल। संबाध—धान्यसुरक्षा के लिए कृषकों द्वारा निर्मित दुर्गम, भूमिगत स्थान या यात्रिकों के पड़ाव का स्थान। राजधानी-राज्य का शासक जहाँ रहता हो। समग्र मनुष्य जीवों की प्रज्ञापना
९२. से किं तं मणुस्सा ? मणुस्सा दुविहा पण्णत्ता। तं जहा—सम्मुच्छिममणुस्सा य गब्भवक्वंतियमणुस्सा य। [९२ प्र.] मनुष्य किस (कितने) प्रकार के होते हैं ? [९२ उ.] मनुष्य दो प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार सम्मूछिम मनुष्य और गर्भज मनुष्य । ९३. से किं तं सम्मच्छिममणुस्सा ? कहि णं भंते! सम्मुच्छिममणुस्सा सम्मुच्छंति ?
गोयमा! अंतोमणुस्सखेत्ते पणुतालीसाए जोयणसयसहस्सेसु अड्डाइजेसु दीव-समुद्देसु पन्नरससु कम्भभूमीसु तीसाए अकम्भभूमीसु छप्पण्णाए अंतरदीवएसु गब्भवक्कंतियमणुस्साणं चेव उच्चारेसु वा १ पासवणेसु वा २ खेलेसु वा ३ सिंघाणेसु वा ४ वंतेसु वा ५पित्तेसू वा ६ पूएसु वा ७ सोणिएसु वा ८ सुक्केसु वा ९ सुक्कपोग्गलपरिसाडेसु वा १० विगतजीवकलेवरेसु वा ११ थी-पुरिससंजोएसु वा १२ [गोयणिद्धमणेमु वा १३ ] णगरणिद्धमणेसु वा १४ सव्वेसु चेव असुइएसु ठाणेसु, एत्थ णं सम्मुच्छिम-मणुस्सा सम्मुच्छति। अंगुलस्स असंखेजइभागमेत्तीए ओगाहणाए असण्णी मिच्छट्ठिी सव्वाहिं पज्जत्तीहिं अपज्जत्तगा अंतोमुत्ताउया चेव कालं करेंति। से तं सम्मुच्छिममणुस्सा।
[९३ प्र.] सम्मूछिम मनुष्य कैसे होते हैं ? भगवन् ! सम्मूछिम मनुष्य कहाँ उत्पन्न होते हैं?
[९३ उ.] गौतम! मनुष्यक्षेत्र के अन्दर, पैंतालीस लाख योजन विस्तृत द्वीप-समुद्रों में, पन्द्रह कर्मभूमियों में, तीस अकर्मभूमियों में एवं छप्पन अन्तर्वीपों में गर्भज मनुष्यों के—(१) उच्चारों (विष्ठाओं— मलों) में (२) पेशाबों (मूत्रों) में, (३) कफों में, (४) सिंघाण—नाक के मैलों (लीट) में,(५) वमनों में, (६) पित्तों में, (७) मवादों में, (८) रक्तों में, (९) शुक्रों—वीर्यों में, (१०) पहले सूखे हुए शुक्र के पुद्गलों को गीला करने में, (११) मरे हुए जीवों के कलेवरों (लाशों) में, (१२)स्त्री-पुरुष के संयोगों में या (१३) ग्राम की गटरों या मोरियों में अथवा (१४) नगर की गटरों-मोरियों में, अथवा सभी अशुचि (अपवित्र-गंदे) स्थानों में इन सभी स्थानों में सम्मूछिम मनुष्य (माता-पिता के संयोग १. वही मलय, वृत्ति, पत्रांक ४७-४८ २. "गामाणिद्धमणेसु वा १२" पाठ मलयगिरि नन्दी टीका के उद्धरण में है।