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________________ प्रथम प्रज्ञापनापद] २३ वे गन्ध से सुगन्ध-परिणत भी होते हैं और दुर्गन्ध-परिणत भी। स्पर्श से कर्कशस्पर्श-परिणत भी होते हैं, मृदुस्पर्श-परिणत भी, गुरुस्पर्श-परिणत भी लघुस्पर्श-परिणत भी, शीतस्पर्श परिणत भी, उष्णस्पर्शपरिणत भी, स्निग्धस्पर्शपरिणत भी होते हैं और रूक्षस्पर्श-परिणत भी। संस्थान से (वे) परिमण्डलसंस्थानसंस्थित भी होते हैं, वृत्तसंस्थान-संस्थित भी, यस्रसंस्थान-संस्थित भी, चतुरस्रसंस्थान-संस्थित भी एवं आयतसंस्थान-संस्थित भी होते हैं ॥ २० ॥ [५] जे रसओ महुररसपरिणता ते वण्णओ कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि, फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउ यफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि, चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २०। १००।३। [११-५] जो रस से मधुर-रसपरिणत होते हैं, वे वर्ण से कृष्णवर्ण-परिणत भी होते हैं, नीलवर्ण-परिणत भी, रक्तवर्ण-परिणत भी होते हैं, पीतवर्ण-परिणत भी तथा शुक्लवर्ण-परिणत भी होते हैं। गन्ध से-(वे) सुगन्ध-परिणत भी होते हैं और दुर्गन्ध-परिणत भी। स्पर्श से (वे) कर्कशस्पर्श-परिणत भी होते हैं; मृदुस्पर्श-परिणत भी, गुरुस्पर्श-परिणत भी लघुस्पर्श-परिणत भी हैं, शीतस्पर्श परिणत भी, उष्णस्पर्श-परिणत भी तथैव, स्निग्धस्पर्शपरिणत भी रूक्षस्पर्श-परिणत भी होते हैं। संस्थान से-(वे) परिमण्डलसंस्थान-परिणत भी होते हैं, वृत्तसंस्थान-परिणत भी, व्यस्रसंस्थान-परिणत भी, चतुरस्रसंस्थानपरिणत भी एवं आयतसंस्थान-परिणत भी होते हैं । २० । १००।३ । १२. [१] जे फासतो कक्खड फासपरिणता ते वण्णओ कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधपरिणता वि दब्भिगंधपरिणता वि. रसओ तित्तरसपरिणता वि कडयरसपरिणता वि कसायरसपरिणता वि अंबिलरसपरिणता वि महुररसपरिणता वि, फासओ गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि वसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि, चउरंससंठाणपरिणता वि आययसंठाणपरिणता वि २३। [१२-१] जो स्पर्श से कर्कशस्पर्श-परिणत होते हैं, वे वर्ण से कृष्णवर्ण-परिणत भी होते हैं, नीलवर्ण-परिणत भी, रक्तवर्ण-परिणत भी, पीतवर्ण-परिणत भी, तथा शुक्लवर्ण-परिणत भी होते हैं। (वे) गन्ध से सुगन्धपरिणत भी होते हैं और दुर्गन्धपरिणत भी। रस से (वे) तिक्तरस-परिणत भी होते हैं, कटुरस-परिणत भी कषायरस-परिणत भी, अम्लरस-परिणत भी और मधुररस-परिणत भी होते हैं। स्पर्श (वे) गुरुस्पर्श-परिणत भी होते हैं लघुस्पर्श-परिणत भी, शीतस्पर्श परिणत भी और, उष्णस्पर्श
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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