SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम प्रज्ञापनापद] कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीयफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्ट संठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २३। ४६। २॥ [१०-२] जो गन्ध से दुर्गन्धपरिणत होते हैं, वे वर्ण से-कृष्णवर्ण-परिणत भी होते हैं, नीलवर्णपरिणत भी, रक्तवर्ण-परिणत भी, पीतवर्ण-परिणत भी और शुक्लवर्ण-परिणत भी होते हैं। रस से(वे) तिक्तरस-परिणत भी होते हैं, कटुरस-परिणत भी, कषायरस-परिणत भी, अम्लरस-परिणत भी होते हैं और मधुररस-परिणत भी होते हैं। स्पर्श से (वे) कर्कशस्पर्श-परिणत भी होते हैं, मृदुस्पर्शपरिणत भी, गुरुस्पर्श-परिणत भी, लघुस्पर्श-परिणत भी, शीतस्पर्श-परिणत भी, उष्णस्पर्श-परिणत भी, स्निग्धस्पर्श-परिणत भी होते हैं और रूक्षस्पर्श-परिणत भी। संस्थान से (वे) परिमण्डलसंस्थान-परिणत भी होते हैं, वृत्तसंस्थान-परिणत भी, त्र्यस्रसंस्थान-परिणत भी, चतुरस्रसंस्थान-परिणत, और आयतसंस्थानपरिणत भी ॥ २३/४६ । २॥ . ११ [१] जे रसओ तित्तरसपरिणता ते वण्णओ कालवण्णपरिणता विणीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सुब्भिगंधपरिणता वि दुन्भिगंधपरिणता वि फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि निद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि वट्टसंठाणपरिणता वि तंससंठाणपरिणता वि चउरंससंठाणपरिणता वि आयतसंठाणपरिणता वि २०। [११-१] जो रस से- तिक्तरस-परिणत होते हैं, वे वर्ण से— कृष्णवर्ण-परिणत भी होते हैं, नीलवर्ण-परिणत भी, रक्तवर्ण-परिणत भी होते हैं, पीतवर्ण-परिणत भी और शुक्लवर्ण-परिणत भी होते हैं। गन्ध से (वे)सुगन्ध-परिणत और दुर्गन्धपरिणत भी होते हैं। स्पर्श से- (वे) कर्कशस्पर्श-परिणत भी होते हैं, मृदुस्पर्श-परिणत भी, गुरुस्पर्श-परिणत भी, लघुस्पर्श-परिणत भी, शीतस्पर्श- परिणत भी, उष्णस्पर्श-परिणत भी, स्निग्धस्पर्श परिणत भी होते हैं, और रूक्षस्पर्श-परिणत भी। संस्थान से वेपरिमण्डलसंस्थान-परिणत भी होते हैं, वृत्तसंस्थान-परिणत भी, त्र्यस्रसंस्थान-परिणत भी, चतुरस्रसंस्थानपरिणत भी और आयतसंस्थान-परिणत भी होते हैं ॥ २०॥ .. [२] जे रसओ कडुयरसपरिणता ते वण्णओ कालवण्णपरिणता वि नीलवण्णपरिणता वि लोहियवण्णपरिणता वि हालिद्दवण्णपरिणता वि सुक्किलवण्णपरिणता वि, गंधओ सुब्भिगंधपरिणता वि दुब्भिगंधपरिणता वि फासओ कक्खडफासपरिणता वि मउयफासपरिणता वि गरुयफासपरिणता वि लहुयफासपरिणता वि सीतफासपरिणता वि उसिणफासपरिणता वि णिद्धफासपरिणता वि लुक्खफासपरिणता वि, संठाणओ परिमंडलसंठाणपरिणता वि
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy