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प्रकाशकीय
राजप्रश्नीयसूत्र का यह तृतीय संस्करण है।
प्रस्तुत सूत्र द्वितीय अंग-आगम सूत्रकृतांगसूत्र का उपांग माना गया है। सूर्याभदेव के कथानक के द्वारा इसमें सरल सुबोध रोचक शैली में जैनदर्शन के सैद्धान्तिक पक्ष को स्पष्ट करने के साथ सूर्याभदेव द्वारा श्रमणभगवान् महावीर के समवसरण में नृत्य-नाट्य कलाओं के प्रदर्शन के माध्यम से श्रमण संस्कृति की कलाओं का प्रांजल रूप भी उपस्थित किया है।
सूर्याभदेव की जीवनकथा से यह भी उजागर किया गया है कि अभिनिवेशों और भ्रान्त धारणाओं से ग्रस्त व्यक्ति जब योग्य मार्गदर्शक का सहवास पाकर प्रगति पथ पर प्रयाण करता है तब आत्मकल्याण करने के साथ-साथ जनकल्याण की ओर उन्मुख अग्रसर हो सकता है।
उपर्युक्त विशेषताओं के कारण इस सूत्र का आधार लेकर उत्तरवर्ती काल में अनेक विद्वान् आचार्यों ने देशी भाषाओं में रासों की रचनायें की हैं।
संक्षेप में कहा जाये तो यह सूत्र भारतीय कलाओं के अन्वेषकों और दार्शनिकों के लिए समान रूप से महत्त्वपूर्ण सामग्री उपस्थित करता है।
प्रस्तुत सूत्र का अनुवाद आदि वाणीभूषण श्री रतनमुनिजी म. ने किया है और श्री देवकुमारजी जैन शास्त्री साहित्यरत्न ने संपादित कर सर्वोपयोगी बनाया है। एतदर्थ वे धन्यवादाह हैं। ___श्रमणसंघ के सर्वतोभद्र स्व. युवाचार्य श्री मधुकरमुनिजी म. की प्रबल आगमभक्ति के फलस्वरूप जो आगम प्रकाशन का कार्य प्रारम्भ हुआ था, वह दिनानुदिन विस्तृत होता गया। विज्ञजनों के साथ-साथ सामान्य पाठकों में आगम साहित्य के पठन-पाठन का व्यापक प्रचारप्रसार होने से समिति द्वारा अप्राप्य आगमों के तृतीय संस्करण प्रकाशित किये जा रहे हैं।
समिति अपने सभी सहयोगियों, पाठकों की आभारी है, जिन्होंने आगमबत्तीसी के प्रकाशन, प्रचार-प्रसार करने में सहयोग दिया है।
ज्ञानचंद बिनायकिया
सागरमल बैताला
अध्यक्ष
रतनचन्द मोदी कार्याध्यक्ष
सायरमल चोरडिया
महामन्त्री
मन्त्री
श्री आगमप्रकाशन समिति, ब्यावर (राजस्थान)