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________________ राजप्रश्नीयसूत्र उस सिंहासन पर ईहामृग, वृषभ, तुरग — अश्व, नर, मगर, विहग — पक्षी, सर्प, किन्नर, रुरु, सरभ (अष्टापद), चमर अथवा चमरी गाय, हाथी, वनलता, पद्मलता आदि के चित्र बने हुए थे। सिंहासन के सामने स्थापित पाद- पीठ सर्वश्रेष्ठ मूल्यवान् मणियों और रत्नों का बना हुआ था। उस पादपीठ पर पैर रखने के लिए बिछा हुआ मसूरक (गोल आसन) नवतृण कुशाग्र और केसर तंतुओं जैसे अत्यन्त सुकोमल सुन्दर आस्तारक से ढका हुआ था । उसका स्पर्श आजिनक (चर्म का वस्त्र) (मृग छाला) रुई, बूर, मक्खन और आक की रुई जैसा मृदु-कोमल था । वह सुन्दर सुरचित रजस्त्राण से आच्छादित था । उस पर कसीदा काढ़े क्षौम दुकूल (रुई से बने वस्त्र) का चद्दर बिछा हुआ था और अत्यन्त रमणीय लाल वस्त्र से आच्छादित था। जिससे वह सिंहासन अत्यन्त रमणीय, मन को प्रसन्न करने वाला, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप अतीव मनोहर दिखता था । ३४ ४९ – तस्स णं सीहासणस्स उवरि एत्थ णं महेगं विजयदुसं विउव्वति, संख-कुंददगरय-अमय-महियफेणपुंज - संनिगासं सव्वरयणामयं अच्छं सण्हं पासादीयं दरिसणिज्जं अभिरूवं पडिरूवं । ४९— उस सिंहासन के ऊपरी भाग में शंख, कुंदपुष्प, जलकण, मथे हुए क्षीरोदधि के फेनपुंज के सदृश प्रभावाले रत्नों से बने हुए, स्वच्छ, निर्मल, स्निग्ध प्रासादिक, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप एक विजयदृष्य (वस्त्र विशेष, छत्राकार जैसे चंदेवे ) को बांधा। ५० — तस्स णं सीहासणस्स उवरि विजयदूसस्स य बहुमज्झदेसभागे एत्थ णं महं एगं वयरामयं अंकुसं विउव्वति । ५० — उस सिंहासन के ऊपरी भाग में बंधे हुए विजयदूष्य के बीचों-बीच वज्ररत्नमय एक अंकुश (अंकुडिया). लगाया । ५१ - तस्सिं च णं वयरामयंसि अंकुसंमि कुंभिक्कं मुत्तादामं विउव्वति । से णं कुंभिक्के मुत्तादामे अन्नेहिं चउहिं अर्द्धकुंभिक्केहिं मुत्तादामेहिं तदधुच्चपमाणेहिं सव्वओ संमता संपरिक्खित्ते । णं दामा तवणिज्जलंबूसगा णाणामणिरयणविविह-हारद्धहारउवसोभियसमुदाया ईसिं अण्णमण्णमसंपत्ता वाएहिं पुव्वावरदाहिणुत्तरागएहिं मंदायं मंदायं एज्जमाणाणि एज्जमाणाणि पलंबमाणाणि पलंबमाणाणि वदमाणाणि वदमाणाणि उरालेणं मणुत्रेणं मणहरेणं कण्ण-मणणिव्वुति करेणं सद्देणं ते पएसे सव्वओ संमता आपूरेमाणा आपूरेमाणा सिरीए अतीव अतीव उवसोभेमाणा उवसोभेमाणा चिट्ठेति । ५१ – उस वज्र रत्नमयी अंकुश में (मगध देश में प्रसिद्ध) कुंभ परिमाण जैसे एक बड़े मुक्तादाम (मोतियों के झूमर -फानूस) को लटकाया और वह कुंभपरिमाण वाला मुक्तादाम भी चारों दिशाओं में उसके परिमाण से आधे अर्थात् अर्धकुंभ परिमाण वाले और दूसरे चार मुक्तादामों से परिवेष्टित था। वे सभी दाम (झूमर) सोने के लंबूसकों (गेंद जैसे आकार वाले आभूषणों), विविध प्रकार की मणियों, रत्नों अथवा विविध प्रकार के मणिरत्नों से बने हुए हारों, अर्ध हारों के समुदायों से शोभित हो रहे थे और पास-पास टंगे
SR No.003453
Book TitleAgam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Philosophy, & agam_rajprashniya
File Size19 MB
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