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अरिहंत-सिद्ध भगवन्तों की स्तुति, सूर्याभदेव द्वारा सिद्धायतन की देवच्छन्दक आदि की प्रमार्जना
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दोष से रहित) अपूर्व अर्थसम्पन्न अपुनरुक्त महिमाशाली एक सौ आठ छन्दों में स्तुति की। स्तुति करके सात-आठ पग पीछे हटा, और फिर पीछे हटकर बायां घुटना ऊंचा किया और दायां घुटना जमीन पर टिकाकर तीन बार मस्तक को भूमितल पर नमाया। नमाकर कुछ ऊंचा उठाया तथा मस्तक ऊंचा कर दोनों हाथ जोड़कर आवर्तपूर्वक मस्तक पर अंजलि करके इस प्रकार कहाअरिहंत-सिद्ध भगवन्तों की स्तुति
१९९- नमोऽत्थु णं अरिहंताणं भगवंताणं, आदिगराणं, तित्थगराणं सयंसंबुद्धाणं, पुरिसुत्तमाणं, पुरिससीहाणं, पुरिसवरपुण्डरीआणं, पुरिसवरगंधहत्थीणं, लोगुत्तमाणं, लोगनाहाणं, लोगहिआणं, लोगपईवाणं, लोगपज्जोअगराणं, अभयदयाणं, चक्खुदयाणं मग्गदयाणं, सरणदयाणं, बोहिदयाणं, धम्मदयाणं, धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, धम्मसारहीणं, धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टीणं, अप्पडिहयवरनाणदंसणधराणं, विअट्टच्छउमाणं, जिणाणं, जावयाणं तिन्नाणं, तारयाणं, बुद्धाणं, बोहयाणं, मुत्ताणं, मोअगाणं, सव्वन्नृणं, सव्वदरिसीणं सिवं, अयलं, अरुअं, अणंतं, अक्खयं, अव्वाबाहं, अपुणरावित्तिसिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं; वंदइ नमसइ ।
१९९- अरिहंत भगवन्तों को नमस्कार हो, श्रुत-चारित्र रूप धर्म की आदि करने वाले, तीर्थंकर तीर्थ की स्थापना करने वाले, स्वयंबुद्ध-गुरूपदेश के बिना स्वयं ही बोध को प्राप्त पुरुषों में उत्तम, कर्मशत्रुओं का विनाश करने में पराक्रमी होने के कारण पुरुषों में सिंह के समान, सौम्य और लावण्यशाली होने से पुरुषों में श्रेष्ठ पुंडरीककमल के समान, अपने पुण्य प्रभाव से ईति-व्याधि भीति—भय आदि को शांत, विनाश करने के कारण पुरुषों में श्रेष्ठ गन्धहस्ती के समान, लोक में उत्तम, लोक के नाथ, लोक का हित करने वाले, संसारीप्राणियों को सन्मार्ग दिखाने के कारण लोक में प्रदीप के समान केवलज्ञान द्वारा लोका-लोक को प्रकाशित करने वाले वस्तु स्वरूप को बताने वाले, अभय दाता, श्रद्धा-ज्ञान रूप नेत्र के दाता, मोक्षमार्ग के दाता, शरणदाता, बोधिदाता, धर्मदाता, देशविरति सर्वविरतिरूप धर्म के उपदेशक, धर्म के नायक, धर्म के सारथी, सम्यक् धर्म के प्रवर्तक चातुर्गतिक संसार का अन्त करने वाले श्रेष्ठ धर्म के चक्रवर्ती, अप्रतिहत श्रेष्ठ ज्ञान-दर्शन के धारक, कर्मावरण या कषाय रूप छद्म के नाशक, रागादि शत्रुओं को जीतने वाले तथा अन्य जीवों को भी कर्मशत्रुओं को जीतने के लिए प्रेरित करने वाले, संसारसागर को स्वयं तिरे हुए दूसरों को भी तिरने का उपदेश देने वाले, बोध को प्राप्त तथा दूसरों को भी उपदेश द्वारा बोधि प्राप्त कराने वाले, स्वयं कर्ममुक्त एवं अन्यों को भी कर्ममुक्त होने का उपदेश देने वाले, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी तथा शिव–उपद्रव रहित, अचल, नीरोग, अनन्त, अक्षय, अव्याबाध अपुनरावृत्ति रूप (जन्म-मरण रूप संसार से रहित) सिद्धगति नामक स्थान में विराजमान सिद्ध भगवन्तों को वन्दन—नमस्कार हो। सूर्याभदेव द्वारा सिद्धायतन के देवच्छन्दक आदि की प्रमार्जना
२००– वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव देवच्छंदए जेणेव सिद्धायतणस्स बहुमज्झदेसभाए तेणेव उवागच्छइ, लोमहत्थगं परामुसइ, सिद्धायतणस्स बहुमझदेसभागं लोमहत्थेणं पमज्जति, दिव्वाए दगधाराए अब्भुक्खेइ, सरसेणं गोसीसचंदणेणं पंचंगुलितलं मंडलगं आलिहइ कयग्गहगहिय जाव' १. देखें सूत्र संख्या १९८