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राजप्रश्नीयसूत्र
तीन प्रकारों के नाम इस प्रकार हैं—१. व्यवहारपल्य, २. उद्धारपल्य और ३. अद्धापल्य। इनमें से व्यवहार पल्य का इतना ही उपयोग है कि उसके द्वारा उद्धारपल्य और अद्धापल्य की निष्पत्ति होती है। उद्धारपल्य के द्वारा द्वीप और समुद्रों की संख्या और अद्धापल्य के द्वारा जीवों की आयु आदि का विचार किया जाता है।
सर्वार्थसिद्धि, तत्त्वार्थराजवार्तिक और त्रिलोकसार में इनका विशद रूप से विवेचन किया गया है। उपकारिकालयन का वर्णन
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१५३—– सूरियाभस्स णं देवविमाणस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते, तं जहा वणसंडविहूणे जाव बहवे वेमाणिया देवा देवीओ य आसयंति जाव विहरंति ।
तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसे एत्थ णं महेगे उवगारियालयणे पण्णत्ते, एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं, तिण्णि जोयणसयसहस्साइं सोलस सहस्साइं दोण्णि य सत्तावीसं जोयणसए तिन्नि य कोसे अट्ठावीसं च धणुसयं तेरस य अंगुलाई अद्धंगुलं च किंचिविसेसूणं परिक्खेवेणं, जोयणं बाहल्लेणं सव्वजंबूणयामए अच्छे जाव पडिवे ।
१५३— सूर्याभ नामक देवविमान के अंदर अत्यन्त समतल एवं अतीव रमणीय भूमिभाग है। शेष बहुत वैमानिक देव और देवियों के बैठने से लेकर विचरण करने तक का वर्णन पूर्ववत् कर लेना चाहिए। किन्तु यहां वनखंड का वर्णन छोड़ देना चाहिए।
उस अतीव सम रमणीय भूमिभाग के बीचों-बीच एक उपकारिकालयन बना हुआ है। जो एक लाख योजन लम्बा-चौड़ा है और उसकी परिधि (कुल क्षेत्र का घेराव) तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन तीन कोस एक सौ अट्ठाईस धनुष और कुछ अधिक साढ़े तेरह अंगुल है। एक योजन मोटाई है। यह विशाल लयन सर्वात्मना (पूरा का पूरा ) स्वर्ण का बना हुआ, निर्मल यावत् प्रतिरूप अतीव रमणीय है ।
विवेचन उपकारिकालयन – प्रशासनिक कार्यों की व्यवस्था के लिए निर्धारित सचिवालय सरीखे स्थान विशेष को कहना चाहिए— 'सौधोऽस्त्री राजसदनम् उपकार्योपकारिका' ( अमरकोश द्वि. कां. पुरवर्ग श्लोक १०, हैम अभिधान कां. ४, श्लोक ५९ ) । किन्तु 'पाइ असद्दमहण्णवो' में उवगारिय+लयण (लेण) इस प्रकार समास पद मानकर उवगारिया का अर्थ प्रासाद आदि की पीठिका और लयण (लेण) का अर्थ गिरिवर्ती पाषाण- गृह बताया है । यहां के वर्णन से प्रतीत होता है कि प्रासाद आदि की पीठिका अर्थ ग्रहण किया है।
१५४— से णं एगाए पउमवरवेड्याए एगेण य वणसंडेण य सव्वतो समंता संपरिक्खित्ते । १५४— वह उपकारिकालयन सभी दिशा-विदिशाओं में सब ओर से एक पद्मवरवेदिका और एक वनखंड (उद्यान) से घिरा हुआ है।
पद्मवरवेदिका का वर्णन
१५५—– सा णं पउमवरवेइया अद्धजोयणं उड्डुं उच्चत्तेणं, पंच धणुसयाई विक्खंभेणं उवकारियलेणसमा परिक्खेवेणं । तीसे णं पउमवरवेइयाए इमेयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते, तं जहा वयरामया णिम्मा रिट्ठामया पतिट्ठाणा वेरुलियमया खंभा सुवण्ण - रुप्पमया फलया, नाणा