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________________ तृतीय अध्ययन] [४५ अन्तर्गत भारतवर्ष में पुरिमताल नामक समृद्धिपूर्ण नगर था। उस पुरिमताल नगर में उदित नाम का राजा राज्य करता था, जो हिमालय पर्वत की तरह महान् था। उस पुरिमताल नगर में निर्णय नाम का एक अण्डों का व्यापारी भी रहता था। वह धनी तथा पराभव को प्राप्त न होने वाला, अधर्मी यावत् (अधर्मानुयायी, अधर्मनिष्ठ, अधर्म की कथा करने वाला, अधर्मदर्शी, अधर्माचारी) एवं परम असन्तोषी था। निर्णय नामक अण्डवणिक के अनेक दत्तभृत्तिभक्तवेतन (रुपये पैसे और भोजन के रूप से वेतन ग्रहण करने वाले) अनेक पुरुष प्रतिदिन कुद्दाल व बांस की पिटारियों को लेकर पुरिमताल नगर के चारों ओर अनेक, कौवी (कौए की मादा) के अण्डों को, घूकी (उल्लू की मादा) के अण्डों को कबूतरी के अण्डों को, बगली के अण्डों को.मोरनी के अण्डों को.मर्गी के अण्डों को.तथा अनेक जलचर.स्थलचर व खेचर आदि जीवों के अण्डों को लेकर पिटारियों में भरते थे और भरकर निर्णय नामक अण्डों के व्यापारी के पास आते थे, आकर उस अण्डव्यापारी को अण्डों से भरी हुई वे पिटारियाँ देते थे। ११—तए णं तस्स निन्नयस्स अंडवाणियस्स बहवे पुरिसा दिन्नभइभत्तवेयणा बहवे काइ अण्डए जाव कुक्कुडिअण्डए य अन्नेसिंच बहूणं जलयर-थलयर-खहयरमाईणं अण्डयए तवएसु य कवल्लीसुय कंदुएसुय भज्जणएसु य इंगालेसु य तलेंति, भन्जेति, सोल्लेन्ति, तलित्ता भन्जित्ता सोलेत्ता रायमग्गे अंतरावणंसि अंडयपणिएणं वित्तिं कप्पेमाणा विहरंति। अप्पणा यावि णं से निन्नयए अण्डवाणिए तेहिं बहूहिं काइअंडएहि य जाव कुक्कुडिअंडएहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइं च सीधुं च आसाएमाणे-४ विहरइ। ११–तदनन्तर उसं निर्णय नामक अण्डवणिक् के अनेक वेतनभोगी पुरुष बहुत से कौवी यावत् कुकड़ी के अण्डों तथा अन्य जलचर, स्थलचर एवं खेचर आदि पूर्वोक्त जीवें के अण्डों को तवों पर कड़ाहों पर एवं अंगारों में तलते थे, भूनते थे, पकाते थे। तलकर, भूनकर एवं पकाकर राजमार्ग की मध्यवर्ती दुकानों पर अण्डों के व्यापार से आजीविका करते हुए समय व्यतीत करते थे। वह निर्णय नामक अण्डवणिक् स्वयं भी अनेक कौवी यावत् कुकड़ी के अण्डों के, जो कि पकाये हुए, तले हुए और भुने हुए थे, साथ ही सुरा, मधु, मेरक, जाति तथा सीधु, इन पंचविध मदिराओं का आस्वादन करता हुआ जीवनयापन कर रहा था। अभग्नसेन का वर्तमान-भव १२–तए णं से निन्नए अंडवाणियए एयकम्मे एयप्पहाणे एयविजे एयसमायारे सुबहुं पावकम्मंसमजिणित्ता एगं वाससहस्सं परमाउयं पालइत्ता कालमासे कालं किच्चा तच्चाए पुढवीए उक्कोसेणं सत्तसागरोवमठिइएसुनेरइएसुनेरइयत्ताए उववन्ने।से णं तओ अणंतरं उव्वट्टित्ता इहेव सालावडीए चोरपल्लीए विजयस्स चोरसेणावइस्सखंदसिरीए भारियाए कुच्छिसिं पुत्तत्ताए उववन्ने। १२—तदनन्तर वह निर्णय नामक अण्डवणिक् इस प्रकार के पापकर्मों को करने वाला अत्यधिक पापकर्मों को उपार्जित करके एक हजार वर्ष की परम आयुष्य को भोगकर मृत्यु के समय में मृत्यु को प्राप्त करके तीसरी पृथ्वी-नरक में उत्कृष्ट सात सागरोपम की स्थितिवाले नारकों में नारक रूप से उत्पन्न १. तृतीय अध्ययन, सूत्र १०
SR No.003451
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_vipakshrut
File Size5 MB
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