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तृतीय अध्ययन]
[४३ पडिपुण्णपंचिदियसरीरे विन्नायपरिणयमेत्ते जोव्वणगमणुप्पत्ते।
६—उस विजय नामक चोरसेनापति की स्कन्दश्री नाम की परिपूर्ण पांच इन्द्रियों से युक्त सर्वांगसुन्दरी पत्नी थी। उस विजय चोरसेनापति का पुत्र एवं स्कन्दश्री का आत्मज अभग्नसेन नाम का एक बालक था, जो अन्यून-सम्पूर्ण पांच इन्द्रियों वाला—संगठित शरीर वाला तथा विशेष ज्ञान रखने वाला और बुद्धि की परिपक्वता से युक्त यौवनावस्था को प्राप्त किये हुए था।
७ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे पुरिमतालनयरे समोसढे। परिसा निग्गया। राया निग्गओ। धम्मो कहिओ। परिसा राया य पडिगओ।
७—उस काल तथा उस समय में पुरिमताल नगर में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी पधारे। परिषद्-जनसमूह धर्मदेशना श्रवण करने गये। राजा भी गया। भगवान् ने धर्मोपदेश दिया। धर्मोपदेश सुनकर राजा तथा जनता वापिस अपने स्थान को लौट आये।
८ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेठे अन्तेवासी गोयमे जाव' रायमग्गं समोगाढे। तत्थ णं बहवे हत्थी पासइ, बहवे आसे, पुरिसे सन्नद्धबद्धकवए। तेसिं णं पुरिसाणं मज्भगयं एगं पुरिसं पासइ अवओडयबंधणं जाव उग्घोसिज्जमाणं । तए णं तं पुरिसं रायपुरिसा पढमंसि चच्चरंसि निसीयावेन्ति, निसीयावेत्ता अट्ठ चुल्लपिउए अग्गओ घाएन्ति,घाएत्ता कसप्पहारेहिं तालेमाणा तालेमाणा कलुणं कागणिमंसाइं खावेंति, रूहिरपाणियं च पाएन्ति। तयाणन्तरं च दोच्चंसि चच्चरंसि अट्ठ चुल्लमाउयाओ अग्गओ घाएन्ति, घाएत्ता कसपहारेहिं तालेमाणा तालेमाणा कलुणं कागणिमंसाई खावेंति, रुहिरपाणियं च पाएन्ति। एवं तच्चे चच्चरे अट्ठमहापिउए, चउत्थे अट्ठ महामाउयाओ, पंचमे पुत्ते, छठे सुण्हाओ, सत्तमे जामाउया, अट्ठमे धूयओ, नवमे नत्तुया, दसमे नत्तुईओ, एक्कारसमे नत्तुयावई, बारसमे नत्तुइणीओ, तेरसमे पिउस्सियपइया, चोद्दसमे पिउस्सियाओ, पन्नरसमे माउस्सियापइया, सोलसमे माउस्सियाणो, सत्तरसमे मामियाओ, अट्ठारसमे अवसेसं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परियणं अग्गओ घाएंति घाएत्ता कसप्पहारेहिं तालेमाणा तालेमाणा कलुणं कागणिमंसाइंखावेंति,रुहिरपाणियं च पाएन्ति!
८—उस काल एवं उस समय में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के प्रधान शिष्य श्री गौतमस्वामी राजमार्ग में पधारे। वहाँ उन्होंने बहुत से हाथियों, घोड़ों तथा सैनिकों की तरह शस्त्रों से सुसज्जित और कवच पहिने हुए अनेक पुरुषों को देखा। उन सब पुरुषों के बीच अवकोटक बन्धन से युक्त उद्घोषित एक पुरुष को भी देखा, जैसा दूसरे अध्ययन में कहा गया है।
तदनन्तर राजपुरुष उस पुरुष को चत्वर (चार मार्गों से अधिक मार्ग जहाँ एकत्रित हों) पर बैठाकर उसके आगे आठ लघुपिताओं (चाचाओं) को मारते हैं। तथा कशादि प्रहारों से ताड़ित करते हुए दयनीय स्थिति को प्राप्त हुए उस पुरुष को उसके ही शरीर में से काटे गये मांस के छोटे-छोटे टुकड़ों को खिलाते हैं और रुधिर का पान कराते हैं। तदनन्तर द्वितीय चत्वर पर उसकी आठ लंघुमाताओं को
१. २.
द्वि.अ., सूत्र-६ द्वि.अ., सूत्र-६
३. द्वि.अ., सूत्र-७