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________________ द्वितीय अध्ययन] [३१ वहाँ पर नगर के अनेक सनाथ जिनका कोई स्वामी हो और अनाथ जिनका कोई स्वामी न हो, ऐसी नगर की गायें, बैल, छोटी गायें—बछड़ियाँ, भैंसे, नगर के सांड, जिन्हें प्रचुर मात्रा में घास-पानी मिलता था, भय तथा उपसर्गादि से रहित होकर परम सुखपूर्वक निवास करते थे। ९-तत्थ णं हत्थिणाउरे नयरे भीमे नामं कूडग्गाहे होत्था, अहम्मिए जाव दुप्पडियाणंदे। तस्स णं भीमस्स कूडग्गाहस्स उप्पला नामं भारिया होत्था, अहीणपडिपुण्णपंचिंदियसरीरा। तए णं सा उप्पला कूडग्गाहिणी अन्नया कयाइ आवनसत्ता जाया यावि होत्था। तए णं तीसे उप्पलाए कूडग्गाहिणीए तिण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं अयमेवारूवे दोहले पाउब्भूए __९—उस हस्तिनापुर नगर में भीम नामक एक कूटग्राह (धोखे से कपटपूर्वक जीवों की फंसाने वाला) रहता था। वह स्वभाव से ही अधर्मी व कठिनाई से प्रसन्न होने वाला था। उस भीम कूटग्राह की उत्पला नामक भार्या थी जो अहीन (अन्यून) पंचेन्द्रिय वाली थी। किसी समय वह उत्पला गर्भवती हुई। उस उत्पला नाम की कूटग्राह की पत्नी को पूरे तीन मास के पश्चात् इस प्रकार का दोहद—मनोरथ (जो कि गर्भिणी स्त्रियों को गर्भ के अनुरूप उत्पन्न होता है) उत्पन्न हुआ १०-'धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ [संपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयत्थाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयपुण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयलक्खणाओ णं ताओ अम्मयाओ, कयविहवाओ णं ताओ अम्मयाओ, सुलद्धे णं तासिं माणुस्सए जम्मजीवियफले जाओ णं बहूणं नगरगोरूवाणं सणाहाण य जाव वसहाण य ऊहेहि य थणेहि य वसणेहि य छप्पाहि य ककुहेहि य वहेहि य कण्णेहि य अच्छीहि य नासाहि य जिब्भाहि य ओढेहि य कम्बलेहि य सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि य परिसुक्केहि य लावणेहि य सुरं च महुं च मेरगं च जाइंच सीहुं च पसन्नं च आसाएमाणीओ विसाएमाणीओ, परिभाएमाणीओ परिभुंजेमाणीओ दोहलं विणेति।तं जड़ णं अहमवि बहूणं नगर जावरे विणिज्जामि ] त्ति कटु तंसि दोहलंसि अविणिजमाणंसि सुक्का भुक्खा निम्मंसा ओलुग्गा ओलुग्गसरीरा नित्तेया दीण-विमण-वयणा पंडुल्लइयमुहा ओमंथियनयण-वयण-कमला जहोइयं पुष्फवत्थगंधमल्लालंकाराहारं अपरि/जमाणी क. यलमलियव्व कमलमाला ओहय जाव (मणसंकप्पा करयलपल्हत्थमुही अट्टज्झाणोवगया भूमिगयदिट्ठीया) झियाइ। १०-वे माताएँ धन्य हैं, पुण्यवती हैं, कृतार्थ हैं, सुलक्षणा हैं, उनका ऐश्वर्य सफल है, उनका मनुष्यजन्म औरजीवन भी सार्थक है, जो अनेक अनाथ या सनाथ नागरिक पशुओं यावत् वृषभों के ऊधस् (वह थैली जिसमें दूध भरा रहता है) स्तन, वृषण-अण्डकोष, पूंछ, ककुद् (स्कन्ध का ऊपरी भाग) स्कन्ध, कर्ण, नेत्र, नासिका, जीभ, ओष्ठ (होंठ) कम्बल—सास्ना (गाय के गले का चमड़ा) जो कि शूल्य (शूला-प्रोत), तलित (तले हुए) भृष्ट (भुने हुए), शुष्क (स्वयं सूखे हुए) और लवण-संस्कृत भांस के साथ सुरा, मधु (पुष्पनिष्पन्न मदिरा-विशेष) मेरक (मद्य विशेष जो तालफल से निर्मित होती है) सीधु (एक विशेष प्रकार की मदिरा जो गुड़ व धान के मेल से निष्पन्न होती है) प्रसन्ना (वह मदिरा जो द्राक्षा १. द्वि.अ., सूत्र-३ २. द्वि.अ., सूत्र–८ ३. द्वि.अ., सूत्र-८
SR No.003451
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_vipakshrut
File Size5 MB
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