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________________ द्वितीय अध्ययन] [२९ मध्यम कुलों में भिक्षा के लिए ईर्यासमिति पूर्वक चलते हुए जहाँ राजमार्ग-प्रधान मार्ग है वहाँ पर पधारे। वहाँ (राजमार्ग) में उन्होंने अनेक हाथियों को देखा। वे हाथी युद्ध के लिये उद्यत थे, जिन्हें कवच पहिनाए हुए थे, जो शरीररक्षक उपकरण (झूल) आदि धारण किये हुए थे, जिनके उदर (पेट) दृढ़ बन्धन से बांधे हुए थे। जिनके झूलों के दोनों तरफ बढ़े बड़े घण्टे लटक रहे थे। जो नाना प्रकार के मणियों और रत्नों से जड़े हुए विविध प्रकार के ग्रैवेयक (कण्ठाभूषण) पहने हुए थे तथा जो उत्तर कंचुक नामक तनुत्राणविशेष एवं अन्य कवच आदि सामग्री धारण किये हुए थे। जो ध्वजा पताका तथा पंचविध शिरोभूषण से विभूषित थे एवं जिन पर आयुध व प्रहरणादि लिए हुए महावत बैठे हुए थे अथवा उन हाथियों पर आयुध (वह शस्त्र जो फेंका नहीं जा सकता, जैसे तलवार आदि) और प्रहरण (जो शस्त्र फेंके जा सकते हैं, जैसे तीर आदि) लदे हुए थे। इसी तरह वहाँ अनेक अश्वों को भी देखा, जो युद्ध के लिए उद्यत थे तथा जिन्हें कवच तथा शारीरिक रक्षा के उपकरण पहिनाए हुए थे। जिनके शरीर पर सोने की बनी हुई झूल पड़ी हुई थे तथा जो लटकाए हए तनुत्राण से युक्त थे। जो बखतर विशेष से यक्त तथा लगाम से अन्वित मख वाले थे। जो क्रोध से अधरों—होठों को चबा रहे थे। चामर तथा स्थासक (आभूषण-विशेष) से जिनका कटिभाग परिमंडित-विभूषित हो रहा था तथा जिन पर सवारी कर रहे अश्वारोही-घुड़सवार आयुध और प्रहरण ग्रहण किये हुए थे अथवा जिन पर शस्त्रास्त्र लदे हुए थे। इसी तरह वहाँ बहुत से पुरुषों को भी देखा जो दृढ़ बन्धनों से बंधे हुए लोहमय कुसूलादि से युक्त कवच शरीर पर धारण किये हुए, जिन्होंने शरासन-पट्टिका–धनुष खींचने के समय हाथ की रक्षा के लिये बांधी जाने वाली चमडे की पट्टी—कसकर बांध रखी थी। जो गले में ग्रैवेयक-कण्ठाभरण धारण किये हुए थे। जिनके शरीर पर उत्तम चिह्नपट्टिका-वस्त्रखण्ड-निर्मित चिह्ननिशानी लगी हुई थी तथा जो आयुधों और प्रहरणों (शस्त्रास्त्र) को ग्रहण किये हुए थे। उन पुरुषों के मध्य में भगवान् गौतम ने एक और पुरुष को देखा जिसके हाथों को मोड़कर पृष्ठभाग के साथ रस्सी से बांधा हुआ था। जिसके नाक और कान कटे हुए थे। जिसका शरीर स्निग्ध (चिकना) किया था। जो कर और कटि-प्रदेश में वध्य पुरुषोचित वस्त्र-युग्म (दो वस्त्र) धारण किया हुआ था अथवा बांधे हुए हाथ जिसके कडियुग (हथकड़ियों) पर रक्खे हुए थे अर्थात् जिसके दोनों हाथों में हथकड़ियाँ पड़ी हुई थी, जिसके कण्ठ में कण्ठसूत्र-धागे के समान लाल पुष्पों की माला थी, जो गेरु के चूर्ण से पोता गया था, जो भय सं संत्रस्त, तथा प्राणों को धारण किये रखने का आकांक्षी था, जिसको तिल-तिल करके काटा जा रहा था, जिसको शरीर के छोटे-छोटे मांस के टुकड़े खिलाए जा रहे थे अथवा जिसके मांस के छोटे-छोटे टुकड़े काकादि पक्षियों के खाने के योग्य किये जा रहे थे। ऐसा वह पापात्मा सैकड़ों पत्थरों या चाबुकों से मारा जा रहा था। जो अनेक स्त्री-पुरुष-समुदाय से घिरा हुआ और प्रत्येक चौराहे आदि पर उद्घोषित किया जा रहा था अर्थात् जहाँ चार या इससे अधिक रास्ते मिले हुए हों ऐसे स्थानों पर फूटे ढोल से उसके सम्बन्ध में घोषणा सुनाई जा रही थी जो इस प्रकार है १. हाथी के शिर के पांच आभूषण बतलाये गये हैं, जैसे कि तीन ध्वजाएँ और उनके बीच दो पताकाएं।
SR No.003451
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_vipakshrut
File Size5 MB
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