SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 80
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय अध्ययन] [२७ ३–उस वाणिजग्राम नगर में सम्पूर्ण पांचों इन्द्रियों से परिपूर्ण शरीर वाली, लक्षणों, मसातिलकादि व्यञ्जनों एवं गुणों से परिपूर्ण, प्रमाणोपेत समस्त अंगोपांग वाली, चन्द्रमा के समान सौम्य आकृति से युक्त, कमनीय, सुदर्शन, परम सुन्दरी, ७२ कलाओं में कुशल, गणिका के ६४ गुणों से युक्त, २९ प्रकार के विशेषों-विषयगुणों में रमन करने वाली, २१ प्रकार के रतिगुणों में प्रधान, कामशास्त्र प्रसिद्ध पुरुष के ३२ उपचारों में कुशल, सुप्त नव अंगों से जागृत अर्थात् जिसके नव अंग (दो कान, दो नेत्र, दो नासिका, एक जिह्वा, एक त्वचा और मन) जागे हुए हैं, अठारह देशों की अठारह प्रकार की भाषाओं में प्रवीण, शृंगारप्रधान वेषयुक्त अर्थात् जिसका सुन्दर वेष मानो श्रृंगार का घर ही हो ऐसी, गीत (संगीत-विद्या) रति (कामक्रीडा) गान्धर्व (नृत्युयुक्त गीत) नाट्य (नृत्यकला) में कुशल मन को आकर्षित करने वाली, उत्तम गति-गमन से युक्त (हास्य बोलचाल, व्यवहार एवं उचित उपचार में कुशल, स्तनादिगत सौन्दर्य से युक्त, गीत, नृत्यादि कलाओं से हजार मुद्रा का लाभ लेने वाली (कमाने वाली, जिसका एक रात्रि का शुल्क सहस्र स्वर्णमुद्राएँ थीं), जिसके विलास भवन पर ऊँची ध्वजा फहरा रही थी, जिसको राजा की और से पारितोषिक रूप में छत्र, चामर-चँवर, बाल व्यंजनिका—चँवरी या छोटा पंखा कृपापूर्वक प्रदान किये गए थे और जो कीरथ नामक रथविशेष से गमनागमन करने वाली थी; ऐसी कामध्वजा नाम की गणिका-वेश्या रहती थी जो हजारों गणिकाओं का स्वामित्व, नेतृत्व करती हुई समय व्यतीत कर रही थी। उज्झितक-परिचय ४–तत्थ णं वाणियग्गामे विजयमित्ते नाम सत्थवाहे परिवसइ। अड्ढे । तस्स णं विजयमित्तस्स सुभद्दा नामं भारिया होत्था।अहीण। तस्स णं विजयमित्तस्स पुत्ते सुभद्दाए भरियाए अत्तए उज्झियए नामं दारए होत्था। अहीण जाव सुरूवे। __४-उस वाणिजग्राम नगर में विजयमित्र नामक एक धनी सार्थवाह-व्यापारीवर्ग का मुखिया निवास करता था। उस विजयमित्र की अन्यून पञ्चेन्द्रिय शरीर से सम्पन्न (सर्वाङ्गसुन्दर) सुभद्रा नाम की भार्या थी। उस विजयमित्र का पुत्र और सुभद्रा का आत्मज़ उज्झितक नामक सर्वाङ्ग-सम्पन्न और रूपवान् बालक था। ५ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसढे। परिसा निग्गया।राया जहा कूणिओ तहा निग्गओ। धम्मो कहिओ। परिसा पडिगया, राया य गओ। ५—उस काल तथा उस समय में श्रमण भगवान् महावीरस्वामी वाणिजग्राम नामक नगर में (नगर के बाहर ईशान-कोण में स्थित दूतिपलाश उद्यान में) पधारे। प्रजा उनके दर्शनार्थ नगर से निकली। राजा भी कूणिक नरेश की तरह भगवान् के दर्शन को गया। भगवान् ने धर्म का उपदेश दिया। उपदेश को सुनकर जनता तथा राजा दोनों वापिस चले गये। उज्झितक की दुर्दशा ६ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेठे अन्तेवासी इन्दभूई नामं अणगारे जाव लेस्से छठें-छट्टेणं जहा पण्णत्तीए पढमाए जाव (पोरिसीए सज्झायं १-२. द्वितीय अध्ययन सूत्र-३। ३. प्र.अ., सूत्र-२
SR No.003451
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_vipakshrut
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy