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[विपाकसूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध नीलसाडगनियत्थं मच्छकंटएणं गलए अणुलग्गेणं कट्ठाइं कलुणाई विस्सराई उक्कूवमाणं अभिक्खणं अभिक्खणं पूयकवले य रुहिरकवले य किमिकवले य वममाणं पासइ, पासित्ता इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए, कप्पिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पन्ने—'अहो णं इमे पुरिसे पुरापोराणाणं जाव विहरइ' एवं संपेहेइ, संपेहित्ता जेणेव भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ। पुव्वभवपुच्छा जाव वागरणं।
५—उस काल और उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के ज्येष्ठ शिष्य गौतम स्वामी यावत् षष्ठभक्त के पारणे के अवसर पर शौरिकपुर नगर में उच्च, नीच तथा मध्यम सामान्य घरों में भ्रमण करते हुए यथेष्ट आहार लेकर शौरिकपुर नगर से बाहर निकलते हैं । निकल कर उस मच्छीमार मुहल्ले के पास से जाते हुए उन्होंने विशाल जनसमुदाय के बीच एक सूखे, बुभुक्षित (भूखे), मांसरहित व अतिकृश होने के कारण जिसका चमड़ा हड्डियों से चिपटा हुआ है, उठते, बैठते वक्त जिसकी हड्डियां किटिकिटिका कड़कड़-शब्द कर रही हैं जो नीला वस्त्र पहने हुए है एवं गले में मत्स्य-कण्टक लगा होने कारण कष्टात्मक, करुणाजनक एवं दीनतापूर्ण आक्रन्दन कर रहा है, ऐसे पुरुष को देखा। वह खून के कुल्लों, पीव के कुल्लों और कीड़ों के कुल्लों का बारंबार वमन कर रहा था। उसे देख कर गौतम स्वामी के मन में यह संकल्प उत्पन्न हुआ,—अहा! यह पुरुष पूर्वकृत यावत् अशुभकर्मों के फलस्वरूप नरकतुल्य वेदना का अनुभव करता हुआ समय बिता रहा है ! इस तरह विचार कर श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास पहुंचे यावत् भगवान् से उसके पूर्वभव की पृच्छा की। भंगवान् महावीर उत्तर में इस तरह फरमाते
पूर्वभव-कथा
६–एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे नंदिपुरे नामं नयरे होत्था। मित्ते राया। तस्स णं मित्तस्स रन्नो सिरीए नामं महाणसिए होत्था, अहम्मिए जाव' दुप्पडियाणंदे।
६—हे गौतम ! उस काल एवं उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप के अन्तर्गत भारतवर्ष में नन्दिपुर नाम का प्रसिद्ध नगर था। वहाँ मित्र राजा राज्य करता था। उस मित्र राजा के श्रीद या श्रीयक नाम का एक सोइया था। वह महाअधर्मी यावत् दुष्प्रत्यानन्द—कठिनाई से प्रसन्न किया जा सकने वाला था।
७ तस्स णं सिरीयस्स महाणसियस्स बहवे मच्छिया य वागुरिया य साउणिया य दिनभइभत्तवेयणा कल्लाकल्लि बहवे सोहमच्छा य जाव पडागाइपडागे य, अए य जावः महिसे य,त्तित्तिरे य जाव मऊरे य जीवियाओ ववरोवेंति, ववरोवेत्ता सिरीयस्स महाणसियस्स उवणेति। अन्ने य से बहवे तित्तिरा य जाव मऊरा च पंजरंसि संनिरुद्धा चिट्ठति।अन्ने य बहवे पुरिसा दिन्न भइभत्तवेयणा ते बहवे तित्तिरे य जाव मऊरे य जीवंतए चेव निप्पक्खेंति, निप्पक्खेत्ता सिरीयस्स महाणसियस्स उवणेति।
७–उसके रुपये, पैसे और भोजनादि रूप से वेतन ग्रहण करनेवाले अनेक मात्स्यिक मच्छीमार,
१. तृतीय अ., सूत्र ४.
२. प्रज्ञापना पद १.
३. सप्तम अ., सूत्र ९.
४. सप्तम अ., सूत्र ९.