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________________ [विपाकसूत्र - प्रथम श्रुतस्कन्ध ५४] लाये गये गाय आदि पशुओं का कर न लिया जाये । ३ – अभटप्रवेश— जिस उत्सव में किसी राजपुरुष के द्वारा किसी घर की तलाशी नहीं ली जा सकती। ४— अदण्डिम - कुदण्डिमन्यायानुसार दी जाने वाली सजा दण्ड कही जाती है और न्यूनाधिक सजा को कुदण्ड कहते हैं, उस दण्ड कुदण्ड से उत्पन्न द्रव्य का जिस उत्सव में अभाव हो । ५- अधरिम — जिस उत्सव में दुकान आदि लगाने के लिये राजा की ओर से वापिस नहीं लौटाई जाने वाली आर्थिक सहायता दी जाये । ७—अनुद्धृत मृदंग ——– जिसमें मृदंग बजाने वालों ने बजाने के लिये मृदंग ग्रहण किये हों, तबलों को बजाने के लिये ठीक ढंग से ऊँचा कर लिया हो । ८ -अम्लान माल्यदाम —— जिसमें खिले हुए पुष्प एवं पुष्पमालाओं की सुव्यवस्था हो । ९ – गणिका नाटकीय कलित——– जो उत्सव प्रधान वेश्या और अच्छे नाटक करने वाले नटों से युक्त हो । १० - अनेक तालाचरानुचरित— जिस उत्सव में ताल बनाकर नाचने वाले अपना कौशल दिखाते हों । ११ – प्रमुदित प्रकीडिताभिराम — जो उत्सव तमाशा दिखाने वालों तथा खेल दिखाने वालों से मनोहर हो । १२ – यथार्ह — जो उत्सव सर्वप्रकार से योग्य — आदर्श व व्यवस्थित हो, तात्पर्य यह कि वह उत्सव अपनी उपमा आप ही हो । २७ – एवं खलु देवाणुप्पिया ! पुरिमताले नयरे महाबलस्स रन्नो उस्सुक्के जाव दसरत्ते पमोए उग्घोसिए। तं किं णं, देवाणुप्पिया ! विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं पुप्फवत्थमल्लालंकारे य इह हव्वमाणिज्जड उदाहु सयमेव गच्छित्था ? २७– (कौटुम्बिक पुरुष चोरसेनापति से कहें — ) हे देवानुप्रिय ! पुरिमताल नगर में महाबल नरेश ने उच्छुल्क यावत् दशदिन पर्यन्त प्रमोद - उत्सव की घोषणा कराई है, तो क्या आपके लिए विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तथा पुष्प वस्त्र माला अलंकार यहीं पर लाकर उपस्थित किए जायें अथवा आप स्वयं वहाँ इस प्रसंग पर उपस्थित होंगे? २८ –तए णं ते कोडुम्बियपुरिसा महाबलस्स रण्णो करयल० जाव' एवं सामि त्ति' आणाए वयणं पडिसुणेन्ति पडिसुणेत्ता, पुरिमतालाओ नयराओ पडिणिक्खमंति पडिनिक्खमित्ता नाइविकिट्ठेहिं अद्धाणेहिं सुहेहिं वसहिपायरासेहिं जेणेव सालाडवी चोरपल्ली तेणेव उवागच्छन्ति, उवागच्छित्ता अभग्गसेणं चोरसेणावई करयल जाव एवं वयासी—' एवं खलु देवाणुप्पिया ! पुरिमताले नयरे महाबलस्स रण्णो उस्सुक्के जाव उदाहु सयमवे गच्छित्था ?" तणं से अभग्गसेणे चोरसेणावई ते कोडुंबियपुरिसे एवं वयासी— 'अहं णं देवाणुप्पिया ! पुरिमतालनयरं सयमेव गच्छामि।' ते कोडुंबियपुरिसे सक्कारेइ सम्माणेइ पडिविसज्जेइ ।
SR No.003451
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_vipakshrut
File Size5 MB
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