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________________ तृतीय अध्ययन] [४९ १९—तए णं ते जाणवया पुरिसा अभग्गसेणेणं चोरसेणावइणा बहुगामघायावणाहिं ताविया समाणा अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावेत्ता एवं वयासी ____‘एवं खलु, देवाणुप्पिया!अभग्गसेणे चोरसेणावई पुरिमतालस्स नयरस्स उत्तरिल्लंजणवयं बहूहिं गामघाएहिं जाव' निद्धणं करेमाणे विहरइ। 'तं सेयं खलु, देवाणुप्पिया! पुरिमताले नयरे महब्बलस्स रण्णो एयमटुं विन्नवित्तए।' तए णं ते जाणवया पुरिसा एयमटुं अन्नमन्नेणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता महत्थं महग्धं महरिहं रायारिहं पाहुडं गिण्हंति, गिण्हित्ता जेणेव पुरिमताले नयरे तेणेव उवागवा, जेणेव महाबले राया तेणेव उवागया।महाबलस्स रणोतं महत्थं जाव पाहुडं उवणेति, उवणेत्ता करयलपरिग्गहियं मत्थए अंजलिं कटु महाबलं रायं एवं वयासी ‘एवं खलु सामी! सालाडवीए चोरपल्लीए अभग्गसेणे चोरसेणावई अम्हे बहूहिं गामघाएहि य जाव२- निद्धणे करेमाणे विहरइ। तं इच्छामो णं, सामी! तुझं ब्राहुच्छायापरिग्गहिया निब्भया निरुवसग्गा सुहेणं परिवसित्तए'त्ति कुटुं पायवडिया पंजलिउडा महाबलं रायं एयमटुं विन्नवेंति। १९—तदनन्तर अभग्नसेन नामक चोरसेनापति के द्वारा बहुत ग्रामों के विनाश से सन्तप्त हुए उस देश के लोगों ने एक दूसरे को बुलाकर इस प्रकार कहा हे देवानुप्रियो ! चोरसेनापति अभग्नसेन पुरिमताल नगर के उत्तरदिशा के बहुत से ग्रामों का विनाश करके वहाँ के लोगों को धन-धान्यादि से रहित कर रहा है। इसलिये हे देवानुप्रियो ! पुरिमताल नगर के महाबल राजा को इस बात से संसूचित करना अपने लिये श्रेयस्कर है। तदनन्तर देश के एकत्रित सभी जनों ने परस्पर इस बात को स्वीकार कर लिया और जहाँ पर परिमताल नगर था एवं जहाँ पर महाबल राजा था, वहाँ महार्थ.महार्घ (बहमल्य) महार्ह व राजा के योग्य भेंट लेकर आये और दोनों हाथ जोडकर मस्तक पर दस नखों वाली अंजलि करके महाराज को वह मूल्यवान् भेंट अर्पण की। अर्पण करके महाबल राजा से इस प्रकार बोले 'हे स्वामिन् ! इस प्रकार निश्चय ही शालाटवी नामक चोरपल्ली का चोरसेनापति अभग्नसेन ग्रामघात तथा नगरघात आदि करके यावत् हमें निर्धन बनाता हुआ विचरण कर रहा है। हे नाथ! हम चाहते हैं कि आपकी भुजाओं की छाया से संरक्षित होते हुए निर्भय और उपसर्ग रहित होकर हम सुखपूर्वक निवास करें।' इस प्रकार कहकर, पैरों में पड़कर तथा दोनों हाथ जोड़कर उन प्रान्तीय पुरुषों ने महाबल नरेश से इस प्रकार विज्ञप्ति की। २०–तए णं महब्बले राया तेसिं जाणवयाणं पुरिसाणं अंतिए एयमटुं सोच्चा निसम्म आसुरत्ते जाव (रुटे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसेमाणे तिवलियं भिउडिं निडाले साह? दंडं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी—'गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया! सालाडविं चोरपल्लिं विलुपाहि, विलुपित्ता अभग्गसेणं चोरसेणावई जीवग्गाहं गिण्हाहि, गिण्हित्ता ममं उवणेहि।' १-२. १/३ सूत्र-५
SR No.003451
Book TitleAgam 11 Ang 11 Vipak Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Principle, & agam_vipakshrut
File Size5 MB
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