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________________ प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्तज्ञात] [२५ समस्त कलाओं का ज्ञाता होकर, युवावस्था को पार करके संग्राम में शूर, आक्रमण करने में वीर और पराक्रमी होगा। विस्तीर्ण और विपुल बल वाहनों का स्वामी होगा। राज्य का अधिपति राजा होगा अथवा अपनी आत्मा को भावित करने वाला अनगार होगा। अतएव हे स्वामिन्! धारिणी देवी ने उदार-स्वप्न देखा है यावत् आरोग्यकारक तुष्टिकारक आदि पूर्वोक्त विशेषणों वाला स्वप्न देखा है। इस प्रकार कह कर स्वप्नपाठक बारबार उस स्वप्न की सराहना करने लगे। विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में स्वप्नपाठकों द्वारा फलादेश में कथित 'रज्जवती राया भविस्सइ, अणगारे वा भावियप्पा' यह वाक्यांश ध्यान देने योग्य है। इससे यह तो स्पष्ट है ही कि अतिशय पुण्यशाली आत्मा ही मानवजीवन में अनगार-अवस्था प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त कर सकता है। इसके अतिरिक्त इससे यह भी विदित होता है कि बालक के माता-पिता को राजा बनने वाले पुत्र को पाकर जितना हर्ष होता था, मुनि बनने वाले बालक को प्राप्त करके भी उतने ही हर्ष का अनुभव होता था। तत्कालीन समाज में धर्म की प्रतिष्ठा कितनी अधिक थी, उस समय का वातावरण किस प्रकार धर्ममय था, यह तथ्य इस सूत्र से समझा जा सकता है। ३९-तए णं सेणिए राया तेसिं सुमिणपाढगाणं अंतिए एयमढं सोच्चा णिसम्म हट्ट जाव' हियए करयल जाव एवं वयासी __ . तत्पश्चात् श्रेणिक राजा उन स्वप्नपाठकों से इस कथन को सुनकर और हृदय में धारण करके हृष्ट, तुष्ट एवं आनन्दितहृदय हो गया और हाथ जोड़ कर इस प्रकार बोला ४०–एवमेयं देवाणुप्पिया! जाव' जनं तुब्भे वदह त्ति कट्ट तं सुमिणं सम्म पडिच्छइ। पडिच्छित्ता ते सुमिणपाढए विपुलेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-गंध-मल्लालंकारेण य सक्कारेइ संमाणेइ, सक्कारित्ता सम्माणित्ता विपुलं जीवियारिहं पीतिदाणं दलयइ। दलइत्ता पडिविसज्जेइ। देवानुप्रियो ! जो आप कहते हो सो वैसा ही है-आपका भविष्य-कथन सत्य है; इस प्रकार कहकर उस स्वप्न के फल को सम्यक् प्रकार से स्वीकार करके उन स्वप्नपाठकों का विपुल अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य और वस्त्र, गंध, माला एवं अलंकारों से सत्कार करता है, सन्मान करता है। सत्कार-सन्मान करके जीविका के योग्य-जीवननिर्वाह के योग्य प्रीतिदान देता है और दान देकर विदा करता है। ४१-तए णं से सेणिए राया सीहासणाओ अब्भुढेइ, अब्भुट्टित्ता जेणेव धारिणी देवी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धारिणिं देवि एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिए! सुमिणसत्थंसि वायालीसं सुमिणा जाव एगं महासुमिणं जाव भुजो भुज्जो अणुवूहइ। ___तत्पश्चात् श्रेणिक राजा सिंहासन से उठा और जहाँ धारिणी देवी थी, वहां आया। आकर धारिणी देवी से इस प्रकार बोला-'हे देवानुप्रिये! स्वप्नशास्त्र में बयालीस स्वप्न और तीस महास्वप्न कहे हैं, उनमें से तुमने एक महास्वप्न देखा है।' इत्यादि स्वप्नपाठकों के कथन के अनुसार सब कहता है और बार-बार स्वप्न की अनुमोदना करता है। १. प्र. अ. सूत्र १८ २. प्र. अ. सूत्र ३६-३७ ३. प्र. अ. सूत्र ३६-३७
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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