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________________ ५३०] [ज्ञाताधर्मकथा तइयं अज्झयणं [तृतीय अध्ययन] रजनी ४०-जइ णं भंते! तइयस्स उक्खेवओ [समणेणं भगवया महावीरेणं धम्मकहाणं पढमस्स वगस्स बिइयज्झयणस्स अयमट्टे पण्णत्ते, तइयस्सणंभंते! अज्झयणस्ससमणेणं भगवया महावीरेणं के अटे पण्णत्ते? तीसरे अध्ययन का उत्क्षेप (उपोद्घात) इस प्रकार है-'भगवन्! यदि श्रमण भगवान् महावीर ने धर्मकथा के प्रथम वर्ग के द्वितीय अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ कहा है तो, भगवन्! श्रमण भगवान् महावीर ने तीसरे अध्ययन का क्या अर्थ कहा है? ४१-एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे णयरे, गुणसीलए चेइए, एवं जहेव राई तहेव रयणी वि। णवरं-आमलकप्पा णयरी, रयणी (रयणे) गाहावई, रयणसिरी भारिया, रयणी दारिया, सेसं तहेव जाव अंते काहिइ। जम्बूस्वामी के प्रश्न के उत्तर में श्री सुधर्मा ने कहा-जम्बू! राजगृह नगर था, गुणशील चैत्य था इत्यादि जो वृत्तान्त राजी के विषय में कहा गया है, वही सब रजनी के विषय में भी नाट्यविधि दिखलाने आदि का वृत्तान्त कहना चाहिए। विशेषता यह है-आमलकल्पा नगरी में रजनी (रयण-रत्न?) नामक गाथापति था। उसकी पत्नी का नाम रजनीश्री था। उसकी पुत्री का भी नाम रजनी था। शेष सब वृत्तान्त पूर्ववत् समझ लेना चाहिए, यावत् वह महाविदेह क्षेत्र से मुक्ति प्राप्त करेगी। चउत्थं अज्झयणं [चतुर्थ अध्ययन] विज्जू-विद्युत् ४२-एवं विजू वि। आमलकप्पा नयरी। विजू गाहावाई। विजूसिरी भारिया। विजू दारिया। सेसं तहेव। इसी प्रकार विद्युत देवी का कथानक समझना चाहिए। विशेष यह है कि आमलकल्पा नगरी थी। उसमें विद्युत् नामक गाथापति निवास करता था। उसकी पत्नी विद्युत्श्री थी। विद्युत् नामक उसकी पुत्री थी। शेष समग्र कथा पूर्ववत्
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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