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[ज्ञाताधर्मकथा
तत्पश्चात् वह काली देवी चार हजार सामानिक देवों तथा अन्य बहुतेरे कालावतंसक नामक भवन में निवास करने वाले असुरकुमार देवों और देवियों का अधिपतित्व करती हुई यावत् रहने लगी। इस प्रकार हे गौतम! काली देवी ने वह दिव्य देवऋद्धि, दिव्य देवधुति और दिव्य देवानुभाव प्राप्त किया है यावत् उपभोग में आने योग्य बनाया है।
३३-कालीणं णं भंते! देवीए केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! अड्डाइज्जाइं पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता।
काली णं भंते! देवी ताओ देवलोगाओ अणंतरं उववट्टित्ता कहिं गच्छिहिइ? कहिं उववज्जिहिइ?
गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ, जाव अंतं काहिइ। गौतम स्वामी ने प्रश्न किया-'भगवन् ! काली देवी की कितने काल की स्थिति कही गई है?' भगवान्–'हे गौतम! अढ़ाई पल्योपम की स्थिति कही है।'
गौतम–'भगवन्! काली देवी उस देवलोक से अनन्तर चय करके (शरीर त्याग कर) कहाँ उत्पन्न होगी?'
भगवान्–'गौतम! महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर यावत् सिद्धि प्राप्त करेगी यावत् सर्व दुःखों का अन्त करेगी।'
३४-एवं खलु जंबू! समणेणं जाव संपत्तेणं पढमवग्गस पढमज्झयणस्स अयमढे पण्णत्तेत्ति बेमि॥१४८॥
श्री सुधर्मास्वामी अध्ययन का उपसंहार करते हुए कहते हैं-हे जम्बू! यावत् सिद्धि को प्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ कहा है। वही मैंने तुमसे कहा है।