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________________ ५१६] [ज्ञाताधर्मकथा हैं। यह देखते ही काली देवी सिंहासन से नीचे उतरी, जिस दिशा में भगवान् थे, उसमें सात-आठ कदम आगे गई और पृथ्वी पर मस्तक टेक कर उन्हें विधिवत् वन्दना की। तत्पश्चात् उसने भगवान् के समक्ष जाकर प्रत्यक्ष दर्शन करने, वन्दना और नमस्कार करने का निश्चय किया। उसी समय एक हजार योजन विस्तृत दिव्य-यान की विक्रिया द्वारा तैयारी करने का आदेश दिया। यान तैयार हुआ और भगवान् के समक्ष उपस्थित हुई। वन्दन किया, नमस्कार किया। देवों की परम्परा के अनुसार अपना नाम-गोत्र प्रकाशित किया। फिर बत्तीस प्रकार की नाट्यविधि दिखला कर वापिस लौट गई। काली देवी के चले जाने पर गौतम स्वामी ने भगवान् के समक्ष निवदेन किया-भंते! काली देवी को यह दिव्य ऋद्धि-विभूति किस प्रकार प्राप्त हुई है? तब भगवान् ने उसके पूर्वभव का वृत्तान्त सुनाया-आमलकल्पा नगरी के काल नामक गाथापति की एक पुत्री थी। उसकी माता का नाम कालश्री था। पुत्री का नाम काली था। काली नामक वह पुत्री शरीर से बड़ी बेडोल थी। उसके स्तन तो इतने लम्बे थे कि नितम्ब भाग तक लटकते थे। अतएव उसे कोई वर नहीं मिला। वह अविवाहित ही रही। ___ एक बार पुरुषादानीय भगवान् पार्श्वनाथ का आमलकल्पा नगरी में पदार्पण हुआ। काली ने धर्मदेशना श्रवण कर दीक्षा अंगीकार करने का संकल्प किया। माता-पिता ने सहर्ष अनुमति दे दी। ठाठ के साथ दीक्षा-महोत्सव मनाया गया। भगवान् ने दीक्षा प्रदान कर उसे आर्या पुष्पचूला को सौंप दिया। काली आर्या ने ग्यारह अंगों-आगमों का अध्ययन किया और यथाशक्ति तत्पश्चर्या करती हुई संयम की आराधना करने लगी। किन्तु कुछ समय के पश्चात् काली आर्या को शरीर के प्रति आसक्ति उत्पन्न हो गई। वह बार-बार अंग-उपांग धोती और जहाँ स्वाध्याय, कायोत्सर्ग आदि करती, वहाँ जल छिड़कती। साध्वी आचार से विपरीत उसकी यह प्रवृत्ति देखकर आर्या पुष्पचूला ने उसे ऐसा न करने के लिए समझाया। वह नहीं मानी। बार-बार टोकने पर वह गच्छ से सम्बन्ध तोड़ कर अलग उपाश्रय में रहने लगी। अब वह पूरी तरह स्वच्छन्द हो गई। संयम की विराधिका बन गई। कुछ समय इसी प्रकार व्यतीत हुआ। अन्तिम समय में उसने पन्द्रह दिन का अनशन-संथारा तो किया किन्तु अपने शिथिलाचार की न आलोचना की और न प्रतिक्रमण ही किया। भगवान् महावीर ने कहा-यही वह काली आर्या का जीव है, जो काली देवी के रूप में उत्पन्न हुआ है। गौतम स्वामी के पुनः प्रश्न करने पर भगवान् ने कहा-देवीभव का अन्त होने पर उद्वर्तन करके काली देवी महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगी। वहाँ निरतिचार संयम की आराधना करके सिद्धि प्राप्त करेगी। . यह प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का सार-संक्षेप है। आगे के वर्गों और अध्ययनों की कथाएँ काली के ही समान हैं अतएव उनका विस्तृत वर्णन नहीं किया गया है, केवल उनके नाम, पूर्वभव के माता-पिता, नगर आदि का उल्लेख करके शेष वृत्तान्त काली के समान जान लेने की सूचना कर दी गई है।
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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