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________________ ४६८] [ज्ञाताधर्मकथा ___ उस समय उन वणिकों को माकन्दीपुत्रों के समान' सैकड़ों उत्पात हुए, यावत् समुद्री तूफान भी आरम्भ हो गया। उस समय वह नौका उस तूफानी वायु से बार-बार कांपने लगी, बार-बार चलायमान होने लगी, बार-बार क्षुब्ध होने लगी और उसी जगह चक्कर खाने लगी। उस समय नौका के निर्यामक (खेवटिया) की बुद्धि मारी गई, श्रुति (समुद्रयात्रा सम्बन्धी शास्त्र का ज्ञान) भी नष्ट हो गई और संज्ञा (होश-हवास) भी गायब हो गई। वह दिशाविमूढ़ हो गया। उसे यह भी ज्ञान न रहा कि पोतवाहन (नौका) कौन-से प्रदेश में है या कौन-सी दिशा अथवा विदिशा में चल रहा है? उसके मन में संकल्प भंग हो गये। यावत् वह चिन्ता में लीन हो गया। ५-तए णं ते बहवे कुच्छिधारा य कण्णधारा य गम्भिल्लगा य संजत्ताणावावाणिया यजेणेव से निजामए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एवं वयासी-'किण्णं तुम देवाणुप्पिया! ओहयमणसंकप्पे जाव [करयलपल्हत्थमुखे अट्ठज्झाणोवगए] झियायसि।' तए णं से णिजामए ते बहवे कुच्छिधारा य कण्णधारा य गभिल्लगाय संजत्ताणावावाणिगया य एवं वयासी-'एवं खलु अहं देवाणुप्पिया! णट्ठमईए जाव' अवहिए त्ति कटु तओ ओहयमणसंकप्पे जाव झियामि।' ___ उस समय बहुत-से कुक्षिधार (फावड़ा चलाने वाले नौकर), कर्णधार, गम्भिल्लक (भीतरी फुटकर काम करने वाले) तथा सांयात्रिक नौकावणिक् निर्यामक के पास आये। आकर उससे बोले-'देवानुप्रिय! नष्ट मन के संकल्प वाले होकर एवं मुख हथेली पर रखकर चिन्ता क्यों कर रहे हो'? तब उस निर्यामक ने उन बहुत-से कुक्षिधारकों, कर्णधारों, गब्भिल्लकों और सांयात्रिक नौकावणिकों से कहा-'देवानुप्रियो ! मेरी मति मारी गई है, यावत् पोतवाहन किस देश, दिशा या विदिशा में जा रहा है, यह भी मुझे नहीं जान पड़ता। अतएव मैं भग्नमनोरथ होकर चिन्ता कर रहा हूँ।' ६-तए णं से कण्णधारा तस्स णिजामयस्स अंतिए एयमढं सोच्चा णिसम्म भीया तत्था उव्विग्गा उब्विग्गमणा ण्हाया कयबलिकम्मा करयल-परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु बहूणं इंदाण य खंदाण य जहा मल्लिनाए जाव उवायमाणा उवायमाणा चिट्ठति। तब वे कर्णधार उस निर्यामक से यह बात सुनकर और समझ कर भयभीत हुए, त्रस्त हुए, उद्विग्न हुए, घबरा गये। उन्होंने स्नान किया, बलिकर्म किया और हाथ जोड़कर बहुत-से इन्द्र, स्कंद (कार्तिकेय) आदि देवों की मल्लि-अध्ययन में कहे अनुसार हाथ जोड़कर मस्तक पर अंजलि करके मनौती मनाने लगे। ७-तए णं से णिजामए तओ मुहुत्तंतरस्स लद्धमईए, लद्धसुईए, लद्धसण्णे अमूढदिसाभाए जाए यावि होत्था। तए णं से णिज्जामए ते बहवे कुच्छिधारा य कण्णधारा य गब्भिल्लगा य संजत्ताणावावाणियगा य एवं वयासी-'एवं खलु अहं देवाणुप्पिया! लद्धमईए जाव अमूढदिसाभाए जाए। अम्हे णं देवाणुप्पिया! कालियदीवंतेणं संवूढा, एस णं कालियदीवे आलोक्कइ।' १. देखिए, अध्ययन ९वां २. अ. १७ सूत्र ४, ३. देखिए अष्टम अध्ययन
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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