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________________ ४६६] [ज्ञाताधर्मकथा लुभाने वाली सामग्री लेकर चले। कालिक-द्वीप पहुँच कर उन्होंने वह सामग्री बिखेर दी। जो घोड़े इन्द्रियों को वश में न रख सके, उस सामग्री के प्रलोभन में फँस गए, वे बन्धन में फंस गए-पकड़े गए और हस्तिशीर्ष नगर में ले आए गए। वहाँ प्रशिक्षित होने में उन्हें चाबुकों की मार खानी पड़ी। वध-बन्धन के अनेकानेक कष्ट सहन करने पड़े। उनकी स्वाधीनता का सुख नष्ट हो गया। पराधीनता में जीवन-यापन करना पड़ा। कुछ अश्व ऐसे भी थे जो वणिकों द्वारा बिखेरी गई लुभावनी सामग्री के जाल में नहीं फँसे थे। वे जाल में फँसने से भी बच गए। वे उस सामग्री से विमुख होकर दूर चले गए। उनकी स्वाधीनता नष्ट नहीं हुई। पराधीनता के कष्टों से वे बचे रहे। उन्हें न चाबुक आदि की मार सहनी पड़ी और न सवारी का काम करना पड़ा। वे स्वेच्छापूर्वक कालिक-द्वीप में ही सुख से रहे। इस प्रकार जो कोई भी साधक इन्द्रियों के विषयों में आसक्त हो जाता है, वह पराधीन बन जाता है। उसे वध-बन्धन सम्बन्धी अनेक प्रकार के कष्ट झेलने पड़ते हैं। दीर्घकाल तक संसार परिभ्रमण करना पड़ता है। इससे विपरीत, जो साधक इन्द्रियों पर संयम रखता है, उनके अधीन नहीं होता, वह स्वतंत्र विहार करता हुआ इस भव में सुख का भागी होता है और भविष्य में राग-मात्र का उच्छेदन करके अजर, अमर, अविनाशी बन जाता है। अनन्त आत्मिक आनन्द को उपलब्ध कर लेता है। इस अध्ययन में अश्ववर्णन के प्रसंग में एक 'वेद' आया है। वेढ़ जैन-आगमों में यत्र-तत्र आने वाली एक विशिष्ट प्रकार की रचना है। वह रचना विशेषतः द्रष्टव्य है।
SR No.003446
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Literature, & agam_gyatadharmkatha
File Size14 MB
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