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[ज्ञाताधर्मकथा
देवस्स दस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता।
ब्रह्मलोक नामक पांचवें देवलोक में कितनेक देवों की दस सागरोपम की स्थिति कही गई है। उनमें द्रौपदी (द्रुपद) देव की भी दस सागरोपम की स्थिति कही गई है। द्रौपदी का भविष्य
२३०-से णं भंते! दुवए देवे ताओ जाव [देवलोगाओ आउक्खएणं ठिइक्खएणं भवक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता] महाविदेहे वासे जाव अंतं काहिइ।
गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर से प्रश्न किया-'भगवन् ! वह द्रुपद देव वहाँ से चय कर कहाँ जन्म लेगा?' तब भगवान् ने उत्तर दिया-'ब्रह्मलोक स्वर्ग से वहाँ की आयु, स्थिति एवं भव का क्षय होने पर महाविदेह वर्ष में उत्पन्न होकर यावत् कर्मों का अन्त करेगा।'
निक्षेप
२३१-एवं खलुजंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं सोलसमस्स णायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते त्ति बेमि।
प्रकृत अध्ययन का उपसंहार करते हुए श्री सुधर्मास्वामी ने जम्बूस्वामी से कहा-इस प्रकार निश्चय ही, हे जम्बू! श्रमण भगवान् महावीर ने सोलहवें ज्ञात-अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादित किया है। जैसा मैंने सुना वैसा तुम्हें कहा है।
॥सोलहवाँ अध्ययन समाप्त॥