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चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र]
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की ध्वनि के साथ तेतलिपुर के मध्य में होकर सुव्रता साध्वी के उपाश्रय में आया। वहाँ आकर सुव्रता आर्या को वन्दना की, नमस्कार किया। वन्दना नमस्कार करके इस प्रकार कहा
'देवानुप्रिये! यह मेरी पोट्टिला भार्या मुझे इष्ट है। यह संसार के भय से उद्वेग को प्राप्त हुई है, यावत् (जन्म, जरा, मरण के दुःखों से भयभीत हुई है, अत: आपके निकट मुंडित होकर गृह-त्यागिन बनना चाहती है-) दीक्षा अंगीकार करना चाहती है। सो देवानुप्रिये! मैं आपको शिष्यारूप भिक्षा देता हूँ। इसे आप अंगीकार कीजिये।'
आर्या ने कहा-'जैसे सुख उपजे वैसा करो, प्रतिबन्ध मत करो-विलम्ब न करो।'
३७–तए णं सा पोट्टिला सुव्वयाहिं अजाहिं एवं वुत्ता समाणा हट्ठ-तुट्ठा उत्तरपुरथिमे दिसिभाए सयमेव आभरण-मल्लालंकारंओमुयइ, ओमुइत्ता सयमेव पंचमुट्ठियं लोयंकरेइ, करित्ता जेणेव सुव्वयाओ अजाओ तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-'आलित्ते णं भंते! लोए' एवं जहा देवाणंदा, जाव एक्कारस अंगाई, बहूणि वासाणि सामन्न परियागंपाउणइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अत्ताणंझोसित्ता सर्टि भत्ताइंअणसणेणं छेइत्ता, आलोइयपडिक्कंता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा अनयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववन्ना।
___ तत्पश्चात् सुव्रता आर्या के इस प्रकार कहने पर पोट्टिला हृष्ट-तुष्ट हुई। उसने उत्तरपूर्व-ईशान दिशा में जाकर अपने आप आभरण, माला और अलंकार उतार डाले। उतार कर स्वयं ही पंचमुष्टिक लोच किया। यह सब करके जहाँ सुव्रता आर्या थी, वहाँ आई, आकर उन्हें वन्दन-नमस्कार किया। वन्दननमस्कार करके इस प्रकार कहा-'हे भगवती (पूज्ये)! यह संसार चारों ओर से जल रहा है, इत्यादि भगवतीसूत्र में कथित देवानन्दा की दीक्षा के समान वर्णन कह लेना चाहिए। यावत् पोट्टिला ने दीक्षा अंगीकार करने के पश्चात् ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। बहुत वर्षों तक चारित्र का पालन किया। पालन करके एक मास की संलेखना करके, अपने शरीर को कृश करके, साठ भक्त का अनशन करके, पापकर्म की आलोचना और प्रतिक्रमण करके, समाधिपूर्वक मृत्यु के अवसर पर काल करके वह किसी देवलोक में देवता के रूप में उत्पन्न हुई।
३८-तए णं से कणगरहे राया अनया कयाई कालधम्मुणा संजुत्ते यावि होत्था। तए णंराईसर जाव [ तलवर-माडंबिय-कोडुंबियइब्भ-सेट्ठि-सेणावइपभिइओ रोयमाणा कंदमाणा विलवमाणा तस्स कणगरहस्स सरीरस्स महया इड्डी-सक्कार-समुदएणं[णीहरणं करेंति, करित्ता अन्नमन्नं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया! कणगरहे राया रज्जे यजाव पुत्ते वियंगित्था, अम्हे णंदेवाणुप्पिया!रायाहीणारायाहिट्ठिया, रायाहीणकज्जा, अयंचणं तेयलिपुत्ते अमच्चे कणगरहस्स रण्णो सव्वट्ठाणेसु सव्वभूमियासु लद्धपच्चए दिनवियारे सव्वकजवड्डावए यावि होत्था। सेयं खलुअम्हं तेयलिपुत्तं अमच्चं कुमारंजाइत्तए'त्ति कटु अन्नमन्नस्स एयमटुं पडिसुणेति, पडिसुणित्ता जेणेव तेयलिपुत्ते अमच्चे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता तेयलिपुत्तं एवं वयासी
१. विस्तृत वर्णन के लिये देखिये-भगवतीसूत्र शतक ९